Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Apr 2017 · 3 min read

कांग्रेस के नेताओं ने ही किया ‘तिलक’ का विरोध

बंगाल के कांग्रेस नेता विपिनचन्द्र पाल, पंजाब के स्वतंत्रता संग्राम के नायक लाला लाजपतराय और महाराष्ट्र में जन्मे राष्ट्रीय नेता बाल गंगाधार ‘तिलक’ कांग्रेस के नरमपंथी बुद्धिजीवी लेखकों, समाजसेवियों, विचारकों और मानवतावादियों से अलग किन्तु एक स्पष्ट राय यह रखते थे कि ‘‘भारत में ब्रिटिश शासन निरंकुश हो गया है। वह जनता की भावनाओं की थोड़ी-सी भी चिन्ता नहीं करता।’’
‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से विख्यात यह टीम अन्ततः इस निष्कर्ष पर पहुँची कि अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को भारत से उखाड़ने के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रीय शिक्षा, राष्ट्रभाषा हिन्दी पर जोर देकर पूरे राष्ट्र को एक राष्ट्रीय भावना के सूत्र से बांधा जाये। विदेशी विशेषकर इंग्लैंड में बनी वस्तुओं का पूरी तरह वहिष्कार किया जाये। पूरे भारतवर्ष में शराब के प्रचलन पर चोट की जाये ताकि अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था जर्जर हो जाये। भारत में अर्धशासन, कथित सुशासन के बजाय ‘स्वराज्य’ की माँग को बुलंद किया जाये।
कलकत्ता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान तिलक ने अपने ओजस्वी भाषण के माध्यम से कहा – ‘‘न हमारे पास शस्त्र हैं और न उनकी कोई आवश्यकता है किन्तु विदेशी वस्तुओं के वहिष्कार के रूप में हमारे पास ऐसा राजनीतिक हथियार है जो अंग्रेजों की आर्थिक रीढ़ को तोड़ने में अचूक साबित होगा। मुट्ठीभर गोरे लोगों का निरंकुश शासन हम भारतीयों की कमजोर संकल्प शक्ति के बूते ही चल रहा है। यदि हम सब एकजुट होकर निसस्वार्थ भाव से अंग्रेजों की उस हर वस्तु का वहिष्कार करने पर जुट जायें, जो किसी न किसी प्रकार की गुलामी का प्रतीक है तो यह कोई असंभव कार्य नहीं कि अंग्रेज भारत न छोडें।’’
तिलक ने आगे कहा – ‘‘माना हममें सशस्त्र विद्रोह की शक्ति नहीं है लेकिन क्या हममें आत्मनिषेध और आत्म संयम का बल भी नहीं है जिसके द्वारा अंग्रेजों की हम पर शासन करने इच्छाशक्ति को नष्ट न किया जा सके? यदि हम अंग्रेजों को शासन चलाने में कोई सहायता नहीं देंगे तो उल्टे अंग्रेज हमसे भयभीत होंगे। राजस्व वसूली और शांति बनाये रखने में परोक्ष-अपरोक्ष दिया गया हमारा सहयोग ही तो पराधीनता के असल रोग को बढ़ावा देता है। भारत से बाहर होने वाले युद्धों में हम जन-धन से अंग्रेजों को सहायता आखिरकार क्यों करते हैं? हमें न्यायालयों के काम में अंग्रेजों की मदद करना बंद कर देना चाहिए। हमें अपने विवाद सुलझाने के लिए अपने न्यायालय विकसित करने होंगे। अब समय आ गया है कि हम सरकार को टैक्स भी न दें। अंग्रेजों का हर प्रकार से बहिष्कार ही हमारा राजनीतिक हथियार है। क्या आप लोग इन सब बातों के लिये तैयार हैं। यदि हाँ तो आप कल ही स्वतंत्र हो जाऐंगे।’’
बाल गंगाधार राव तिलक के स्वराज के इस सिंह-घोष ने एक तरफ जहाँ हजारों कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में नव उत्साह का संचार किया, वहीं अंग्रेजी हुकूमत के प्रति नरम रवैया अख्तियार करने वाले उन नेताओं को तिलक का यह भाषण नश्तर की तरह चुभ गया, जिनकी राजनीति राष्ट्रभक्ति के मिथ्याभिमान के बूते चलती थी, जो विचारक, चिन्तक, लेखक, समाजसुधारक की भूमिका में तो बने रहना चाहते थे, किन्तु अंग्रेजों की कृपा पर आश्रित रहकर। तन और मन से अंग्रेज बनकर अंग्रेजी हुकूमत का छद्म विरोध करने वाले ऐसे ही कथित देशभक्तों ने जल भुनकर लाला लाजपत राय द्वारा बुलाये जाने वाले कांग्रेस के अगले अधिवेशन के प्रस्ताव को तो ठुकराया ही, साथ ही लाल-पाल-बाल को अलग-थलग करने के लिये पूरी योजना के साथ लाहौर के स्थान पर नागपुर में कांग्रेस का अगला अधिवेशन करने पर मुहर लगा दी।
देश को स्वाधीनता का पाठ पढ़ाने वाले नरमपंथी नायक यहीं नहीं चुप बैठे। इन्होंने सूरत में अचानक मुम्बई प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन कर तिलक के ‘राष्ट्रीय शिक्षा’ और ‘बहिष्कार’ के प्रस्ताव को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। इतना ही नहीं इलाहाबाद के प्रादेशिक सम्मेलन में बाल-लाल-पाल के कार्यकर्ताओं को भाग लेने से रोक दिया। और 1906 में कलकत्ता में आयोजित अधिवेशन में इन्ही छद्म राष्ट्रचिन्तकों ने स्पष्ट कर दिया कि तिलक व उनके साथियों के लिए कांग्रेस में अब कोई जगह नहीं है।
————————————————————–
संपर्क-15/109, ईसानगर, अलीगढ़

Language: Hindi
Tag: लेख
310 Views

You may also like these posts

राम के नाम को यूं ही सुरमन करें
राम के नाम को यूं ही सुरमन करें
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
ध्यान एकत्र
ध्यान एकत्र
शेखर सिंह
शिव रात्रि
शिव रात्रि
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
तेरी याद मै करता हूँ हरपल, हे ईश्वर !
तेरी याद मै करता हूँ हरपल, हे ईश्वर !
Buddha Prakash
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
यूं तन्हाई में भी तन्हा रहना एक कला है,
यूं तन्हाई में भी तन्हा रहना एक कला है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कटु दोहे
कटु दोहे
Suryakant Dwivedi
समाज सेवक पुर्वज
समाज सेवक पुर्वज
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
लड़ाई छल और हल की
लड़ाई छल और हल की
Khajan Singh Nain
पिया की प्रतीक्षा में जगती रही
पिया की प्रतीक्षा में जगती रही
Ram Krishan Rastogi
सच
सच
Sanjay ' शून्य'
#मुक्तक-
#मुक्तक-
*प्रणय*
शिव ही बनाते हैं मधुमय जीवन
शिव ही बनाते हैं मधुमय जीवन
कवि रमेशराज
"गंगा मैया"
Shakuntla Agarwal
हे मृत्यु...
हे मृत्यु...
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
शायरी
शायरी
डॉ मनीष सिंह राजवंशी
"अपराध का ग्राफ"
Dr. Kishan tandon kranti
"अकेडमी वाला इश्क़"
Lohit Tamta
आवो करीब तुम यहाँ बैठों
आवो करीब तुम यहाँ बैठों
gurudeenverma198
इश्क़ के नाम पर धोखा मिला करता है यहां।
इश्क़ के नाम पर धोखा मिला करता है यहां।
Phool gufran
हो तो बताना!
हो तो बताना!
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
- तेरी मेरी प्रेम कहानी -
- तेरी मेरी प्रेम कहानी -
bharat gehlot
खुश रहने की कोशिश में
खुश रहने की कोशिश में
Surinder blackpen
एक तरफा मोहब्बत...!!
एक तरफा मोहब्बत...!!
Ravi Betulwala
चॅंद्रयान
चॅंद्रयान
Paras Nath Jha
हम कहाँ कोई जमीं या
हम कहाँ कोई जमीं या
Dr. Sunita Singh
बरक्कत
बरक्कत
Awadhesh Singh
सितामढी़
सितामढी़
श्रीहर्ष आचार्य
बारिश की बूंदों ने।
बारिश की बूंदों ने।
Taj Mohammad
हम जानते हैं - दीपक नीलपदम्
हम जानते हैं - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
Loading...