काँटों ने हौले से चुभती बात कही
काँटों ने हौले से
चुभती बात कही
चमक उठी एक बूँद लहू की
उँगलियों की पोर पर
आखिर
फूलों ने था क्या बिगाड़ा
महज़ अपने शौख के लिए
किया क्यों अलग शाख से
—– अतुल “कृष्ण”
काँटों ने हौले से
चुभती बात कही
चमक उठी एक बूँद लहू की
उँगलियों की पोर पर
आखिर
फूलों ने था क्या बिगाड़ा
महज़ अपने शौख के लिए
किया क्यों अलग शाख से
—– अतुल “कृष्ण”