क़रार आये इन आँखों को तिरा दर्शन ज़रूरी है
क़रार आये इन आँखों को तिरा दर्शन ज़रूरी है
रहे उल्फ़त की ये शमआ सदा रौशन ज़रूरी है
वगरना बेच खायेंगे वतन को ये सियासी लोग
क़लमकारों का आपस में हो गठबंधन ज़रूरी है
मेरे अब्बू ये कहते थे कि दौलत पर न तुम जाना
मेरे बच्चे ये कहते हैं कि पापा, धन ज़रूरी है
कभी देखा नहीं मैंने उतरती धूप का मन्ज़र
कोई छोटा सा हो घर मे मिरे आंगन ज़रूरी है
दिलों में घर बनाएगा तुम्हारा शेर भी आसी
ग़ज़ल कहने से पहले शब्द का मन्थन ज़रूरी है