क़तील की तरह
वो है ताबूत में आखिरी कील की तरह
झपट लेता है हर मौका चील की तरह।
गल्तियां करके भी मानते हैं कहाँ हुजूर
देने लगतें है सफाई वकील की तरह ।
हर एक किरदार में ढल कर देख लिया
मगर फितरत है पुराने दलील की तरह।
मोहताज हैं मोहतरम तजुर्बों का बेशक़
भले हो सुरत उनकी ज़मील की तरह ।
चलो ठीक है जी रहे हैं जो वो भरम में
कौन समझता है उन्हें क़तील की तरह।
-अजय प्रसाद