क़ता _ मुक्तक,,,,,
क़ता _ मुक्तक,,,,,
क़दम छू लिये हैं , गुनाह ए यकी है ,
जो कल कुछ नहीं थे,वही ज़िंदगी है ,
लबों पे हँसी के लिये झुक गये हम ,
ख़ता तुम कहो तो, ख़ता बस यही है ।
✍️नील रूहानी ,, 01/01/2025
क़ता _ मुक्तक,,,,,
क़दम छू लिये हैं , गुनाह ए यकी है ,
जो कल कुछ नहीं थे,वही ज़िंदगी है ,
लबों पे हँसी के लिये झुक गये हम ,
ख़ता तुम कहो तो, ख़ता बस यही है ।
✍️नील रूहानी ,, 01/01/2025