कह भी दो
एक व्यक्ति के दिल में बहुत बार ऐसी बातें आती हैं जो कि वो चाहते हुए भी नहीं कह पाता है। उसकी अन्तरात्मा की आवाज तो कुछ और कहना चाहती है परंतु उसका अहम उसको स्वभावनानुसार व्यवहार करने नही देता।
एक व्यक्ति को निश्चित रूप से अपनी उन भावनाओ को अभिव्यक्त करना सीखना चाहिए जो वो व्यक्त करना चाहता है। एक उचित इच्छा, यदि अव्यक्त रह जाए, तो हमेशा व्यक्ति के मन और दिमाग पर बोझ का कारण बनती है, जिसके परिणामस्वरूप मन असमंजस की स्थिति में आ जाता है।
असमंजस में पड़े हुए व्यक्ति द्वारा लिया गया फैसला उचित नहीं होता। उसकी आत्मा उसे बार बार इस बात का एहसास कराते रहती है कि उसे कुछ और करना था, जो उसने नही किया। नतीजन पछतावा और दुख की टीस हमेशा सताती रहती है।
मनोज पेशे से एक चार्टर्ड अकाउंटेंट था। दिल्ली के कनॉट प्लेस जैसे अति व्यस्ततम इलाके में उसने अपना ऑफिस ले रखा था। उसके अंदर दस बारह लोग काम भी कर रहे थे। अच्छी खासी आमदनी थी उसकी।
एक छोटे से शहर से आए हुए व्यक्ति के लिए दिल्ली जैसे शहर में अपनी पहचान बना पाना इतना आसान न था। इस स्टेटस को हासिल करने के लिए उसे काफी मेहनत करनी पड़ी थी।
अभी दस बारह साल पहले की ही तो बात है जब वो बसों में यात्रा करता। पैसे बचाने के लिए ऑटो के स्थान पर पैदल हीं चला करता। बुखार होते हुए भी वो काम करता रहा। अपने करियर में उसने अनगिनत बार समस्याओं का समना किया , पर हार कभी नहीं मानी।
एक समय था जब पचास रुपये का भी पेन खरीने की भी औकात नहीं थी।आज दस हजार का पेन था उसके पास।कहते हैं कि मेहनत का फल जरूर मिलता है, उसे भी मिला।
मनोज अपने उस महंगे पेन को काफी पसंद करता था। ये पेन उसके लिए मात्र एक पेन नही था। ये उसके लिए स्टेटस सिंबल का प्रतीक भी था। एक तो पेन खुबसूरत था ही इसके साथ हीं साथ उसके अहम की पुष्टि भी करता था।
अपने शर्ट में उस महंगे पेन को लगागर वो अन्य लोगों पे धौंस जमा सकता था। वह पेन उसे इस बात का बार बार एहसास कराता कि अन्य साधारण लोगों से अलग है।
ये पेन उसके नीचे से ऊपर उठने की कहानी को बयां करता। लोगो को भी इस बात का ध्यान कराता कि मनोज कहाँ से उठकर आया है। वो पेन उसके संघर्ष और उसकी जीत की कहानी को बयां करता।
एक दिन मनोज जब फाइलों में व्यस्त था तभी उसकी निगाह अपने अपनी शर्ट के पौकेट पर गई। वो सन्न रह गया। वो पेन उसके शर्ट के पॉकेट से गायब था।
उसकी समझ में नही आ रहा था आखिर वो पेन गया कहाँ। आखिर इतने महंगे पेन को वो बार बार खरीद तो नहीं सकता था। किसकी नजर लग गई उस पेन पर, उसकी नजर से बाहर की बात थी।
अपने ऑफिस के स्टाफ, क्लर्क आदि पर झल्लाहट उसकी खिन्नता को बार बार बयान करती। कभी कार ड्राइवर, कभी घर के नौकर, कभी धोबी वाले पर, जाने कहाँ कहाँ उसका ध्यान गया?
उसकी शक की सुई जाने कहाँ कहाँ चली, खुद उसको भी इस बात का ध्यान नही रहा। वो जितना ज्यादा झल्लाता, उसके नीचे काम करने वाले लोगों की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ती। वो लोग उतने हीं ज्यादा परेशान होते।
उस घटना को हुए लगभग सात महीने बीत गए थे। उसके दिल में उस खोये हुए पेन की टीस भी कम हो गई थी। हाँ इतना जरूर था कि उसने ये सबक ले लिया था कि अपनी औकात से ज्यादा कीमती वस्तु को रखना नहीं चाहिए। लिहाजा अब साधारण पेन से काम चलाता था।
रोज की तरह वो अपनी फाइलों में मशगूल था कि अचानक उसके क्लर्क ने फाइलों में से उस पेन को निकाल कर मनोज को दे दिया। उसका क्लर्क उस पेन को छुपा भी सकता था पर उसने ऐसा किया नहीं।
जिस तरह उस पेन के खो जाने से मनोज सन्न रह गया था, ठीक उसी तरह मिल जाने से। पेन के खो जाने पर वो उसी तरह आश्चर्यजनक तरीके से दुखी हुआ था, जिस प्रकार इस पेन के मिलने पर , पर अन्तर ये था कि इस बार वो आश्चर्यजनक तरीके से खुश हुआ था। पेन को लपकते हुए उसने क्लर्क को थैंक यू बोला और क्लर्क मुस्कुराकर शांत भाव से चला गया।
पेन तो मिल गया लेकिन सोते समय उसे बहुत बातें व्यथित कर रही थी । कैसे उसने अपने क्लर्क, अपने ऑफिस स्टाफ पर अकारण शक किया, बिना कारण झुंझलाया।
किस तरह उसके नीचे काम करने वाले लोग उसकी नाजायज शक के शिकार हुए और किस तरह उसके क्लर्क ने वो पेन ढूंढकर बिना किसी शिकायत के लौटा दिया। उसके क्लर्क की ईमानदारी उसके अकारण झुंझलाहट पर भारी पड़ी। वो कहना तो सॉरी चाहता था , परंतु जुबाँ पर वो बात आते आते कब थैंक यू में बदल गई, उसे खुद पता नहीं चला।
उस घटना के बाद बहुत बात उसने सबको सॉरी कहने की कोशिश की, पर कह नही पाया। उसका अहंकार बार बार आड़े आ जाता। पेन तो मिल गया था पर आत्मा पे बोझ चढ़ गई । उसके दिल की टीस तो चली गई थी परंतु उसकी आत्मा की टीस का क्या?
इसीलिए यदि आपकी अन्तरात्मा किसी चीज को कहने के लिए कहती है तो उसे कह हीं देना चाहिए। आप अपनी आत्मा की आवाज को दबा तो सकते हैं पर उससे बच नही सकते।
आप अपनी गलती को दुनिया की नजरों से तो छुपा सकते हैं परंतु आपकी खुद की नजरों का क्या? दुनिया लाख आपको निर्दोष मान ले परंतु खुद की नजरों में दिखाई पड़ने वाले दाग का क्या?
लोगो की नजरों में यदि आप गलत नही है इसका मतलब ये नहीं कि आप स्वयं की नजरों में भी सही हों। स्वयं की नजरों का हारा हुआ व्यक्ति सारी दुनिया को जीतकर भी जीता हुआ नही होता।
जबकि स्वयं की नजरों पर खरा उतरा हुआ व्यक्ति पूरी दुनिया हारकर भी हारा हुआ नहीं होता। और इसके लिए ये जरूरी है कि व्यक्ति को अपने अन्तरतम की आवाज को हमेशा सुननी चाहिए।
सही वक्त पर कहने की बात कह हीं देना चाहिए, क्या पता उचित वक्त बार बार आये या ना आए? वरना व्यक्ति के अन्तरतम में रह भी क्या सकता है, पछतावे के सिवा, ठीक मनोज की तरह?
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वयं की नजरों पर खरा उतरा हुआ व्यक्ति पूरी दुनिया हारकर भी नहीं हारता और स्वयं की नजरों का हारा हुआ व्यक्ति सारी दुनिया को जीतकर भी जीता हुआ नही होता।