कहो उस प्रभात से उद्गम तुम्हारा जिसने रचा
कहो उस प्रभात से उद्गम तुम्हारा जिसने रचा
कहो उस संसार से लय तुम्हारा जिसने मढ़ा
कहो उस आकाश से विस्तार जहाँ अनंत है
कहो उस परमार्थ से एकांत जहाँ है काफिला
कहो हर एक उस बुंद से ताप तुम्हारा जिसने हरा
आभार कहो संघर्ष को हर क्षण तुम्हें जिसने गढ़ा
“आभार ”
©️ दामिनी नारायण सिंह