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24 Apr 2024 · 1 min read

कही-अनकही

वे शब्द जो मैंने कहे नहीं, वे गीत जो तुमने सुने नहीं
तुम मन अधरों से छू देना सारे मुखरित हो जाएंगे

कल को यह देह रही न रही पर गीत रहेंगे सदा यहीं
तुम इनको अपना स्वर देना शव भी जीवित हो जाएंगे

अव्यक्त भाव की भाषा की अभिव्यक्ति अक्षर होते हैं
जो गीत कंठ से ना निकले वे सबसे सुंदर होते हैं
हम नयन मूंद लेंगे अपने तुम अंतर पट खोले रखना
ये तेरे नूपुर की रुनझुन धुन से गुंजित हो जाएंगे

होंगे तन से अति दूर किंतु प्राणों से प्राण निकट होंगे
तब सहसा वे अनसुने राग अनगाये गीत प्रकट होंगे
तुम नितांत हो मौन मात्र लय में अनहद की खो जाना
ना जाने कितने विरस सुमन कानन विकसित हो जाएंगे

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