कहीं शाम ढलने से पहले
कहीं शाम ढलने से पहले तपता सूरज जला न डाले।
तुम ज़ुल्फ़ों का साया करके छा दो बादल काले काले।।
सागर की लहरों सी आहें उठती हैं मेरे दिल में
तुमसे अगर इक़रार न होता जाने क्या होता पल में
जीवन का ये चंचल पंछी उड़ जाता नभ के थल में
तुम चाहो तो रखो सलामत कर लो दिल को खुद के हवाले।
तुम ज़ुल्फ़ों ………………………………………………….।।
देख न ले ये दुश्मन दुनियाँ तेरा मेरा प्रेम मिलन
सबकी नजरों को खलता है हरा भरा अपना आँगन
इसीलिए तुम चोरी चोरी बहलाते रहना मेरा मन
तुमसे मिलन की एक तमन्ना मेरे दिल का चैन चुरा ले।
तुम ज़ुल्फ़ों का………………………………………….।।
संजय नारायण