कहीं फूलों की साजिश में कोई पत्थर न हो जाये
कहीं फूलों की साजिश में कोई पत्थर न हो जाये
बहुत ज्यादा उगाने में ज़मी बंजर न हो जाये
जिसे नफ़रत के तमगे ने सताया ही सताया हो
कोई क़ातिल मुहब्बत में कहीं रहबर न हो जाये
जहाँ बस जुर्म होते थे सितमगर का जहां सारा
रहा बियबान बन कर के हँसी मंजर न हो जाये
बचा लो नाक हर इक चीज को सूँघों न ऐसे तुम
जिसे हम फूल कहते हैं कहीं खंजर न हो जाये
महज़ चाहत के किस्से ही सुनाते हैं सभी सबको
क़यामत ही कहीं चाहत सभी मिलकर न हो जाये