कहीं फटे न व्योम अंगार …!
नहीं रहा अब न्याय धर्म , संकुचित पीड़ित सत्य विचार ,
पुण्य धरा हो रही आतंकित आक्रांत, झेल जिहादी बौछार ,
दिशाहीन भ्रष्ट शासनतंत्र किया कैसा प्यारा देश बंटाढार ;
इसलिए बर्बरों मलेच्छों की उन्मादी पशुता साकार !
देख रहा हूं कहीं न फटे व्योम-मही अंगार ;
कवि मन करता है चीत्कार !!!