******* कहीं तो दिल जला है ********
******* कहीं तो दिल जला है ********
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अंबर मे उठा धुआँ कहीं तो दिल जला है,
आई काम ना दुआ कहीं तो दिल जला है।
आँखों में लगी झड़ी कोई तो सिलसिला है,
ठंडी सी हवा छुआ कहीं तो दिल जला है।
कोई बात न समझ आई बड़ा सिरफिरा है,
हर बाजी लगे जुआ कहीं तो दिल जला है।
दिखती दूर बहुत मंजिल हसीं ख्वाबों की,
गम का गहरा कुआँ कहीं तो दिल जला है।
मनसीरत कहीं फसा दलदल बड़ी गहरी है,
नम से भरी पछुआ कहीं तो दिल जल्स है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)