कहानी- ‘भूरा’
कहानी- ‘भूरा’
प्रतिभा सुमन शर्मा
भूरा एक मंदिर के बाहर बरामदे में सोता उठता था पूरा दिन। उसका घर ही था मंदिर का बरामदा। भूरा पता नहीं कहाँ से आया और न जाने कहाँ का था। गांव के बड़े बूढ़े भी नहीं बता पाए कि वह है कौन। भूरा खुद भी भूल चुका था अपने बचपन और जवानी के दिन। उसे उस बरामदे के सिवा कुछ याद भी नहीं था। फटी पुरानी-सी मोटी-सी शाल ओढ़े रहता और एक चप्पल वह भी इतनी जीर्णं थी कि उसमें भी छेद हो चुके थे। और हां, उसके हाथ मे एक कड़ा था। बस यही उसके जाति या धर्म की निशानी थी शायद। सुबह तड़के पांच बजे उठता और हां! भूरे की जम्हाई उस पूरे गांव को उठाती। उठते ही इतनी जोर की जम्हाई देता की पूरा गाँव उसकी जम्हाई से जग जाता। उठके मंदिर के भगवान को दंडवत करता और चल देता नदी में नहाने। जाड़ा हो या बारिश हो या हो कड़कती धूप। भूरा का यह कार्यक्रम कभी नहीं चुका। आकर फिर पूरा दिन मंदिर के बरामदे में बैठे रहना। मंदिर का पुजारी आता और उसे कुछ खाने को दे जाता। पुजारी के आने तक मंदिर की झाड़ू बुहारी भूरा ही करता। पर मंदिर के अंदर की सफाई पुजारी खुद करता वहां भूरा को जाने की अनुमति नहीं थी। बस महारीन आती और खाली मटके में पानी भर जाती। महारीन जवानी में ही विधवा हो बैठी थी
गांव में कुल सौ के करीब घर थे। एक पुजारी का ही घर था जो ठीक-ठीक बना हुआ था। बाकी सब कच्चे मकान थे। सरकारी कोई सुविधा अब तक गांव तक न पहुंची थी। न बिजली न पानी न सड़क। गांव के सारे लोग निचली जाति के थे एक पुजारी को छोड़ कर। गांव के लोग खेती-बाड़ी करके अपना पेट पालते थे और मिलजुल कर रहते आये थे। लड़ाई झगड़ा छोटी मोटी तकरार हो ही जाती थी कभी कभार। इस गांव की लडकी आस-पास के ही गांव में ही ब्याही जाती। और यहाँ के लड़कों की शादी आसपास के गांव में ही हो जाती।
शिक्षा का तो कहीं कोई नामो निशान नहीं था। इसलिए न ही कोई स्कूल था।
बस गांव में एक पुजारी ही था जो सबसे ज्यादा समझदार लगता। पर न जाने क्या सूझी पुजारी को आजकल वह महारीन को लेकर मंदिर के पीछे जाने लगा। महारीन भी बड़ी खुश खुश रहती थी आजकल चहकती रहती थी।
भूरा से यह बात न छुपी थी। एक दिन उनके मंदिर के पीछे जाने के कुछ देर बाद भूरा भी मंदिर के पीछे गया। और न जाने क्या देखा उसने कि पुजारी उसके पीछे बुहारी का झाड़ू लेकर भागा और उसकी खूब पिटाई की। जम कर मार पड़ी। गांव के कुछ लोग बीच बचाव के लिए आये पूछा भी भूरे से कि क्या हो गया ऐसा जो पुजारी तुमको खाना लाकर खिलाता है वह अचानक तुम्हारी जान का दुश्मन बन गया?
लोगों ने कितना ही पूछ लिया लेकिन भूरा ने एक शब्द भी किसी को कुछ कहा नहीं। बिल्कुल चुपचाप मंदिर के बरामदे में पड़ा रहा। पुजारी के घर से रोटी बंद होने से भूरा गांव में दो चार घर भीख मांग आता। जो कुछ बचा खुचा होता घरों में लोग दे देते।
दो तीन दिन बाद महारीन आई थी आज और उसने मंदिर के सारे मटको में पानी भर दिया। भूरा पड़े पड़े उसको देखता रहा। और महारीन भी बराबर भूरे को ही देख रही थी। न भूरा ने कुछ कहा न महारीन ने ही। लेकिन महारीन का राज बाहर आते देर नहीं लगी। थोड़े ही दिनों में सारे गांव में महारीन के बढ़ता पेट किसी से छुप न सका।
पुजारी महारीन को मंदिर के पीछे ले भी जाता और उसे मारता भी। आखिर भूरा ही महारीन को बचाता। महारीन के बढ़ते पेट के साथ साथ गांव के लोगों की बातें भी बढ़ी। कुछ जवान मर्दों की तो जात ही भ्र्ष्ट हो गयी महारीन के पेट से रहने से। अब वह दिन भर झोपड़ी में ही रहती पुजारी देता उतने से अपना पेट भरती। महारीन का जितना पेट बढा उतनी निचली जाती के लोगों की इज्जत घटी। सब ने मिलकर दूर गांव के बाहर एक गढ्ढा किया और महारीन को उस गढ्ढे में डाल दिया। और आजूबाजू से गढ्ढे में मिट्टी डालने लगे। भूरा को कुछ अंदेसा हुआ तो वह भी उधर भागा।
भूरा ने रहम की भीख मांगी और कहा कि मैं हूँ उसके बच्चे का बाप। और न जाने क्यों लोगों के हाथ रुक गए। भूरे को कहा कि तु ही हमारे घरों की झूठन पर पल रहा है और गांव से ही गद्दारी ? गांव की बहू बेटी संग मुँह काला किया? और खूब भला बुरा कहा उसे। सब के जाने के बाद, उसने महारीन को हाथ दिया और खड्डे से निकाला।
महारीन चुपचाप भूरे के साथ साथ चलने लगी। फिर भूरा मंदिर के बरामदे में बैठ गया और महारीन अपने झोपड़ी में चली गयी।
लेकिन दुनिया इधर की उधर हो गयी हो भूरा की जम्हाई पर लोगों का सुबह उठना उसी तरह चल रहा था। और दिन बीत रहे थे। उस दिन महारीन को पेट मे बहुत दर्द उठा मटके में पानी डालते-डालते। उससे चला भी नहीं जा रहा था। भूरा उसे धीरे-धीरे मंदिर के पीछे ले गया । इतने में पुजारी आया उसने देखा भूरा महारीन को सहारे से मंदिर के पीछे ले गया है।
पुजारी ने रोज की तरह निर्विकार ढंग से मंदिर की सफाई की, पूजा की जैसे उसको कोई फर्क ही न पड़ रहा हो। महारीन के ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने से उसके कान बैठे जा रहे थे पर मजाल है कि वह अपनी जगह से हिला भी?
थोड़ी देर में खून से सना बच्चा लेकर भूरा आया। और भूरे ने बताया महारीन न रही। पर पुजारी को कोई फर्क न पड़ा। वह अपना रोज का क्रिया कलाप करते ही चलता बना।
भूरे ने बच्चे को अपने हाथ मे लिया और बच्चे को धोती से पोंछा और नदी में नहलाने ले गया।