कहानी,, बंधन की मिठास
अमित और राकेश दो सगे भाई थे, जिनका बचपन एक ही छत के नीचे बीता, लेकिन एक ही छत के नीचे रहते हुए भी उनके बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी हो गई थी। अमित अपने छोटे भाई राकेश को हर चीज में पीछे रखना चाहता था। ये स्पर्धा कभी पढ़ाई में होती, तो कभी दोस्तों में। राकेश, जो दिल का साफ और अपने भाई का स्नेह पाने को हमेशा तत्पर था, हर बार अपने भाई का आदर रखते हुए चुप रह जाता। माँ-पिता इन दोनों को देखकर कई बार अनजाने ही आहें भरते, परंतु वे सोचते कि शादी के बाद ये सब कुछ ठीक हो जाएगा।
समय बीता और अमित की शादी सविता से हो गई। सविता के रूप में जैसे उस घर में एक तूफान आया। वह सुंदर, चतुर और विचारशील तो थी, पर उसका अपना एक स्वार्थी दृष्टिकोण था। उसने देखा कि अमित और राकेश की स्पर्धा में वो अवसर है, जिससे वह इस घर की नींव हिला सकती है। वह अमित को धीरे-धीरे यह बात समझाने लगी कि अब समय आ गया है कि वे अपना अलग घर बसा लें, जिससे उनके संबंधों में कोई हस्तक्षेप न हो। अमित जो पहले ही अपने छोटे भाई से प्रतिस्पर्धा के बोझ में दबा था, अपनी पत्नी की बातों में आ गया।
अमित के घर छोड़ने की बात सुनकर माँ-पिता के दिल में एक दर्द की लहर उठी। उनकी आँखे नम थीं, लेकिन उन्होंने आँसुओं को छिपा लिया, क्योंकि वे अपने बेटे का निर्णय बदल नहीं सकते थे। राकेश के दिल पर भी गहरा आघात हुआ, लेकिन उसने किसी से कुछ न कहा और अपने माता-पिता का सहारा बनने की ठान ली।
फिर कुछ समय बाद, राकेश की भी शादी हो गई। उसकी पत्नी, रीमा, बिल्कुल सादगी और ममता की मूरत थी। जैसे ही उसने घर में कदम रखा, उसने अपने सास-ससुर और पति की आँखों में एक अदृश्य पीड़ा को महसूस किया। एक रात, जब सब सो रहे थे, रीमा ने राकेश के चेहरे पर एक गहरी उदासी देखी और उससे इस दर्द का कारण पूछा। राकेश ने धीरे-धीरे अपनी बात साझा की। रीमा ने उसकी बातें सुनीं, और उसके दिल में एक संकल्प जाग उठा कि वह इस परिवार को फिर से जोड़कर रहेगी।
रीमा ने सविता के पास जाकर उसकी दोस्ती को अपनाया। उसने सविता को अपनी बड़ी बहन की तरह मानते हुए उससे सलाह-मशविरा लेना शुरू कर दिया। रीमा की सादगी और अपनापन धीरे-धीरे सविता के दिल में जगह बनाने लगा। एक दिन रीमा ने सविता को बताया, “दीदी, परिवार में जो बंधन होता है, वह हमारे दिलों की ताकत से बंधा होता है। हम जैसे भी हों, हमें एक-दूसरे के साथ मिलकर रहना चाहिए, तभी घर का हर कोना खुशियों से महकता है।”
सविता इस बात को सुनकर गहरी सोच में डूब गई। उसने महसूस किया कि शायद उसने अलगाव की जो राह अपनाई, वो उसकी स्वार्थपरता थी। उसने अमित को भी रीमा की बातों का जिक्र किया। एक दिन, सविता अमित को लेकर अपने सास-ससुर के घर आई और उनसे माफी माँगी। माँ-पिता ने आँसुओं से भरी आँखों के साथ उसे गले से लगा लिया।
उस दिन पूरा परिवार एक साथ बैठा, एक-दूसरे की आँखों में झाँककर उन बातों को कहा जो शब्दों में नहीं कही जा सकतीं थीं। रीमा ने अपनी ममता और समझदारी से इस टूटे हुए परिवार को जोड़ने का काम किया। उसकी सादगी ने सभी के दिलों में प्यार की नई किरण जगा दी।
*”★★★परिवार का असली सुख मिल-जुलकर रहने में है, और सच्चे प्रेम का आधार त्याग, ममता और अपनापन ही होता है।
★★★
कलम घिसाई