*कहानी घर की-!
आओ कहानी तुम्हें सुनाये
निज कुटम परिवार की
एक पेड़ की दो शाखाएं
फूले फले परिवार की
स्नेह भरा संयुक्त कुटुम
आँगन के गुन्जार की
आओ कहानी तुम्हें सुनाये
निज कुटम परिवार की
था चलता हिल मिल के
थी न कुढ़न अभाव की
बड़े प्रेम से रहते थे
कभी न आपस में लड़ते थे
जीवन निर्वाहन करते थे
एक दिन एसी हवा चली
द्वैष भाव तूफान की
गरल घुल गया हर अन्तस में
नज़र लगी हैवान की
आओ कहानी तुम्हें सुनाये
निज कुटम परिवार की
छिड़ने लगे थे युद्ध आपस में
अब दशा संग्राम की
उठती आंगन में प्राचीरें
अब द्वैष और अभाव की
जहां कभी था संयुक्त कुटुम
अब होती बातें हिस्सा बांट की
आओ कहानी तुम्हें सुनाये
निज कुटम परिवार की
एक पेड़ की शाखाएं
फूले फले परिवार की
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक ( हरदोई)
(उत्तर प्रदेश)