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10 Jul 2021 · 7 min read

कहानी : कौन अपना कौन पराया…

कहानी : कौन अपना कौन पराया……

हर रोज ही की तरह सुबह छः बजे जब मिसेज रत्ना जरीवाला सोकर उठीं तो उन्हें कुछ थकावट सी लग रही थी, जबकि वो कल रात अपने नियत समयानुसार ही सो गई थीं।
करीब पैंसठ वर्षीय रत्ना जी अपने कोठीनुमा घर में कुछ चुनिंदा नौकरों के साथ अकेले ही रहती थीं । पिछले तीन वर्ष पूर्व ही उनके पति सेठ पन्ना लाल जरीवाला का स्वर्गवास हो गया था। वो जाने के बाद ज्वैलरी के अपने एक नामी स्टोर,कई मंहगी गाड़ियाँ बंगला और अन्य चल-अचल कर गए थे।
शहर में नामी ज्वैलर्स रहे सेठ जरीवाला के एक विवाहित पुत्र और एक पुत्री थे।
पिता की मृत्यु के बाद उनके पुत्र पुखराज ने अपने पिता का कारोबार बख़ूबी संभाल लिया था और वो अपने परिवार के साथ उसी शहर के एक दूसरे इलाके में अपने अलग पंसदीदा घर में सपरिवार रहता था। उनकी पुत्री मुक्ता अपने परिवार सहित विदेश में रहती थी।

रत्ना जी जो स्वयं बहुत ही प्रसिद्ध लेखिका और समाज सेविका थीं, लोक कल्याण के कार्यों में बहुत व्यस्त रहती थीं और यही कारण रहा था कि उन्होंने बच्चों के साथ ना रह कर अपने इस घर में ही रहना अधिक सुविधाजनक लगता था।
उनका अधिकतर समय अपने द्वारा गठित ‘एन जी ओ’ और अन्य सहायक संस्थाओं में सेवा में ही बीतता था। उन्होंने अपने पति के जाने के बाद से खुद को पूरी तरह जरूरत मंदो की सेवा और सहयोग के लिए ही समर्पित कर दिया था।
बेटे बहू अपने बच्चों के साथ कभी-कभी घर पर मांँ के साथ समय बिताने आ जाया करते थे। सभी ने अपनी अपनी आवश्यकता और सहूलियत के हिसाब से ही अपना जीवन यापन करने की राहें चुन ली थी जिसमें कि सभी प्रसन्नता से रहते थे।

रत्ना जी के आवाज लगाते ही हर दिन तय दिनचर्या की तरह उनकी कामवाली लक्ष्मी ने उनको नींबू वाला गर्म पानी लाकर दे दिया था।
अपने रोजमर्रा के कामों से निवृत होकर उन्होंने जल्द ही बाहर जाने के लिए आज के दिन में निबटाये जाने वाले सभी कार्यक्रम की लिस्ट देखी।
कोरोना के कठिन दौर से गुजर रहे लोगों की वो और उनकी संस्था भरपूर मदद कर रहे थे… चाहे गरीब मजदूरों की बस्ती में खाना पहुँचाना हो या जरूरत मंदो को दवाईयां आक्सीजन सिलेंडर, कांसनट्रेटर या एम्बुलेंस उपलब्ध करवाना जो भी उनसे बन पड़ रहा था वो जी जान से सबकी मदद में लगी हुई थीं ।

शहर में कई दिनों से सख्त लाॅकडाउन लगा दिया गया था। लोगों तक खाना और आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुँचाने में उनकी संस्था के बहुत से सदस्य भी कोरोना महामारी की चपेट में आ गए थे अतः बहुत कुछ काम रत्ना जी को स्वयं ही देखना पड़ रहा था।

हालांकि उनके बेटे और बेटी ने उन्हें बाहर ना जाने की सख्त हिदायत दे रखी थी, लेकिन उन्होंने अपने आप को इस संकट के समय में पूरी तरह सेवा में लगा दिया था।
जल्द ही तैयार होकर वो हल्का नाश्ता और अपनी बी पी की दवा खाकर, अपने ड्राइवर को साथ लेकर संस्था पहुँची और सारी व्यवस्थाओं को सदस्यों को समझाने और जरूरत मंदो के लिए हर संभव कोशिश करने को कहा।
हर तरफ ही बिखरी निराशा और अपनों को खोकर बेबस लोगों को इस तरह बेहाल देखकर उन्हें भी बहुत दुख हो रहा था।
उनका यही प्रयास था कि उनको जो कुछ ईश्वर ने दिया है उससे, जितना हो सके लोगों का जीवन बचाया जा सके।
दोपहर होते – होते उनको थोड़ा बुखार और बदन दर्द सा महसूस हुआ तो उन्होंने घर जाकर थोड़ा आराम करने की सोची।
मन ही मन उनको कोविड संक्रमित होने का डर भी सता रहा था सो उन्होंने अपने फेमिली डॉ को फोन करके घर से उनका ब्लड सैंपल ले जाने की बात कही।
अपने बेटे पुखराज को फोन पर अपनी तबीयत की जानकारी दी तो वह नाराज होने लगा था कि,… “माँ आप इतने विकट रूप से फैल रहे संक्रमण में क्यों घर से बाहर जा रहीं थीं।”…

उन्होंने बेटे को चिंतित होते देख समझाया और कहा कि,
“मैं अपना ख्याल रख रही हूँ सो तुम ज्यादा परेशान न होना ब्लड और कोविड टेस्ट के लिए सैंपल दे दिया है और कल सुबह तक सभी रिपोर्ट भी आ जाएगीं।”
ये सब सुनकर बेटा थोड़ा आश्वस्त हो गया।

रत्नब जी ने तब तक खुद को घर में ही आइसोलेट कर लिया था।
पूरे दिन भर वो फोन पर ही अपनी संस्था के काम की जानकारी लेती रही थी। लक्ष्मी उनको समय- समय पर भाप लेने व कुछ देसी तरह के उपचार के लिए मदद कर रही थी।
डॉक्टर के बताए अनुसार उन्होंने हल्का खाना खा कर बुखार की दवा भी ले ली थी।
घर में उपस्थित सभी नौकरों को भी मालकिन की तबीयत ठीक ना होने पर चिंता सता रही थी।
रात को करीब तीन बजे जब लक्ष्मी ने मालकिन रत्ना जी के कराहने की सी आवाज सुनी तो घबराकर उसकी नींद खुल गयी थी,…. वो उनके कमरे के बाहर ही अपना बिस्तर लगाकर सोयी थी ताकि मालकिन को जरूरत पड़ने पर वह तुरन्त जाग सके।

आवाज सुनकर वो तुरंत उनके कमरे में पहुँची तो देखा रत्ना जी बहुत पसीने – पसीने हो रही थीं और अपने छाती पकड़े कराह रही थीं … लक्ष्मी को मालकिन को इस हालत में देखकर डर लगने लगा और एक पल को समझ नहीं आया कि वो क्या करे और किसको बुलाये…!
फिर भी उसने हिम्मत करके बाहर सर्वैंट क्वार्टर में सो रहे ड्राइवर को जल्दी से अंदर आने को कहा और आनन फानन में दोनों उनको पास के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में लेकर पहुँचे।

इधर लक्ष्मी के कहे अनुसार घर पर मौजूद दूसरे नौकरों ने उनके बेटे को भी ये सूचना दे दी थी और बता दिया था कि उन्हें किस अस्पताल में लेकर गये थे।
रत्ना जी के बेटे ने अपनी पत्नी को भी जगाकर ये बताया तो उसने सासू जी के कोविड संक्रमण की संभावना जताते हुए अस्पताल ना जाकर यहीं से अपने परिचत डाक्टर से उन्हें उचित ट्रीटमेंट की सलाह दे डाली….!
ये सब सुनकर पुखराज के कुछ पल घबराहट और असमंजस की स्थिति में ही गुजर गए… फिर कुछ सोचकर उसने घर से ही उस अस्पताल के प्रमुख डॉ संजीव मल्होत्रा साहब को अपनी माँ के बारे में जानकारी दी और तुरंत उनकी हर संभव मेडिकल सहायता के लिए विशेष आग्रह किया।
उसके पिता जी से पुराने परिचय के चलते व रत्ना जी के स्वास्थ्य की गंभीरता को देखते हुए ही उन्हें डॉ संजीव के निर्देशानुसार जल्दी इमर्जेंसी में एडमिट कर लिया गया था और उपस्थित मेडिकल स्टाफ ने कोरोना प्रोटोकोल के चलते एंटीजन टेस्ट करवाकर ट्रीटमेंट शुरू कर दिया था।

इस बीच डॉ संजीव भी अस्पताल पहुँच गए थे और रत्ना जी की मेडिकल जिम्मेदारी उन्होंने पूरी तरह से संभाल ली थी।
सारे जरूरी टेस्ट करवा लिए गये थे…. बाकी सब ठीक था बस ईसीजी से पता चला था कि उनको माइल्ड हार्ट अटैक आया था।
रात भर रत्ना जी को आई सी यू में ही गहन देखभाल में रखा गया था।
उनका बेटा पुखराज फोन पर ही लगातार डॉ से माँ का मेडिकल अपडेट ले रहा था।
उसने विदेश में बसी अपने छोटी बहिन को भी माँ की तबियत की पूरी जानकारी दे दी थी। वह तो ये सब सुनकर बहुत ही असहाय महसूस कर रही थी क्योंकि कोविड प्रोटोकोल के चलते सारी अंतरराष्ट्रीय हवाई सेवाएं बंद थीं और वो चाहकर भी कठिन समय मे माँ के पास नहीं आ पा रही थी…।
फिर भी वहीं से उसने माँ का मनोबल बढ़ाने और उनके स्वास्थ्य की स्थिति पर डाक्टर से हर तरह से संपर्क बनाए रखा था।

इधर अपनी मालकिन के जल्दी ठीक होने के लिए रात भर ईश्वर से प्रार्थना करते घर के दोनों नौकर समझे जाने वाले सदस्य लक्ष्मी और ड्राइवर अस्पताल के गलियारे में बैचेनी के साथ समय बिता रहे थे।
दोनों ने अपने और अपने परिवार की एक पल को भी परवाह न करते हुए कोरोना महामारी के कठिन दौर में भी असली मानवता का परिचय दिया था।
दोनों हर समय घर अस्पताल के बाहर ही बैठे उनसे मिलने के लिए तत्पर रहते थे।
अगले दो दिनों में रत्ना जी की तबीयत में सुधार दिखाई देने लगा था। यह देखकर सभी को थोड़ी राहत मिली थी।
सबने देखा कि रत्ना जी की आँखें लगातार किसी को आसपास ढूंढ रहीं थीं,…… लक्ष्मी मन ही मन इस बात को समझ पा रही थी लेकिन अपनी बातों से वो अपनी मालकिन का ध्यान इस बात पर से हटाने का भरसक प्रयास कर रही थी।
एक सबसे अच्छी बात यह थी कि उनकी दूसरी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट भी नेगेटिव आई थी।
लगता था ये सब उनके अच्छे कर्मों का ही परिणाम था कि आज वो उन अनजान मदद पायें लोगों की समय पर की गई सूझबूझ, सहायता और दुआओं से ठीक-ठीक थीं।

यही बात कि माँ की रिपोर्ट नेगेटिव है, दूसरे दिन जब उनके बेटे को पता चली तो वो शाम को अपनी माँ को मिलने अस्पताल चला आया था..!
वहाँ पहुँच कर उसने देखा कि घर की नौकरानी लक्ष्मी माँ को अपने हाथ से बना घर का गर्म खाना खिला रही थी… ।
रत्ना जी की आँखें जैसे ही अपने बेटे पर पड़ी उन्होंने कमजोर लड़खड़ाती आवाज में हिम्मत करके बस इतना ही कहा कि,….. “मुझे कोरोना नहीं है बेटा,…. अब मैं ठीक हो गई हूँ मुझे तो मेरा अपना परिवार संभाल रहा है… तुम जाओ! अपना और अपने परिवार का ख्याल रखो।”
ये सब सुनकर पुखराज का सर शर्म और आत्मग्लानि से झुक गया और वह रोते-रोते माँ के पैरों को पकड़कर अपनी भूल की क्षमा मांगने लगा …।
इस अचानक आई विपत्ति ने रत्ना जी को जीवन में “कौन अपना कौन पराया”… का बहुत ही अच्छे से अहसास करा दिया था।

©®उषा शर्मा
जामनगर (गुजरात)

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