कहानी एक घर की
एक ही दिन में तीन-चार छोटी-छोटी घटनाएँ घट गई । झलक ने सुबह उठते ही बताया ,”पापा कल मेरी फीस जाएगी ।अजय एक मिनट तो खबर सुनकर शांत कुरसी पर बैठा रहा फिर एक दम चीख कर बोला, “कल आखिरी तारीख है और अब बता रही हो । आज से पहले बताने से क्या हो जाता ! बैंक से निकालने के लिए एक दिन का नोटिस काफ़ी है -पापा !
बोलने बहुत लगी हो । मेरी ही कही हुई कटार-सी बात मुझे हो घोंप रही हो । बोलने की आज़ादी कटार-सी होती है । होती ही है , इस बात पर निर्भर करता है कि कौन कह रहा है । अच्छा विषय पर फिर कभी चर्चा करेंगे । इस वक्त तो फ़ीस ज़रूरी है -याद रखना । झलक कॉलेज चली गई । आजकल बोलने से पहले एक बार भी नहीं सोचते …। अजय गहरी सोच में डूबा था तभी मीना आकर अजय के सामने खड़ी हो गई । क्या है? शाम के लिए आते में नमक तक कुछ भी नहीं है । अच्छा ! मीना जाने लगी तो अजय ने पूछा , क्या बज है ?” आठ , चाहो तो अब उठ जाओ । एक कप चाय मिल सकती है क्या ? अच्छा देती हूँ । पाँच मिनट बाद मीना चाय बनाकर लाई । प्याला अजय के हाथ मे थमाती हुई बोलू , ” अब और मत माँगना ; डिब्बा निचोड़कर चीनी दाल दी है ।” अच्छा !
सुनो , मैंने अपने लिए एक नौकरी ढूँढ ली है । कल से जाऊँगा। अजय उठ कर बैठा । मुझसे पूछा तक नहीं , बस खबर दे रही हो । नहीं, पूछ रही हूँ । अभी एक दिन बाकी है और नौकरी तो करनी ही है । झलक भी ट्यूशन ढूँढ रही है । घर तो चलाना है ना ! ओह! मीना चली गई । अजय फिर लेट गया और भी सपाट भाव से ।
कुछ दिनों से अजय की सोचने की कुछ से कुछ हो गई है । कभी -कभी सोचता है , वह क्या सोचे …। मीना -बाहर तो उठकर जाना ही पड़ेगा , फ़ीस का इंतज़ाम तो करना ही पड़ेगा । खाने पीने का इंतज़ाम तो करना ही पड़ेगा ।
कहानी एक घर की, कड़ी सभी के दिल की ।