कहानी: आपको कहीं देखा है ?
छोटी कहानी: आपको कहीं देखा है ?
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पार्क में टहलते टहलते अचानक वे दोनों एक दूसरे को देखने लगे। कुछ – कुछ पहचानने की कोशिश कर रहे थे । उनमें से एक स्त्री थी , जिसकी आयु लगभग साठ वर्ष होगी तथा दूसरा पुरुष था जिसकी आयु लगभग सत्तर वर्ष की थी। दोनों में 10 वर्ष का अंतर था लेकिन कहने की आवश्यकता नहीं कि दोनों ही बुढ़ापे की दहलीज पर कदम रख चुके थे । काफी देर तक वे दोनों एक दूसरे को देखते हुए कुछ सोचते रहे फिर कुछ समझ में जब नहीं आया तो आगे बढ़ गए।
कॉलोनी का यह बहुत खूबसूरत पार्क था जिसमें कॉलोनी के निवासी रोजाना सुबह को टहलने के लिए आते थे। यह स्त्री और पुरुष उसी कॉलोनी के नये-नये निवासी थे। दोनों रिटायर्ड व्यक्ति थे। स्त्री सरकारी नौकरी से अभी रिटायर हुई थी तथा पुरुष को रिटायर हुए 10 वर्ष हो गए थे। दोनों का अपना भरा पूरा घर संसार था घर गृहस्थी थी। बेटे बहू थे। पोते पोती थे । खुशी खुशी दोनों का घर संसार चल रहा था।
अगले दिन फिर कॉलोनी के पार्क में वे दोनों एक दूसरे के आमने सामने आए। स्त्री की आंखों में अब विद्रोह का भाव था और पुरुष उस स्त्री को देख कर नजरें झुका रहा था ।
स्त्री ने कड़क आवाज में कहा-” आप वही हैं जो स्कूल के मोड़ पर मुझे मिलते थे ?”
पुरुष ने कुछ नहीं कहा ।चुपचाप सिर झुका दिया।
स्त्री बोली-” केवल मुझे ही नहीं आपने तो सैकड़ों लड़कियों को छेड़ा है। उनके दुपट्टे छीने हैं और इस प्रकार से उनसे दुर्व्यवहार किया है कि उनका घर से स्कूल जाना दूभर हो गया था। उस समय शर्म के मारे हम लोग किसी से आपकी शिकायत भी तो नहीं कर पाते थे। बस आपस मे सहेलियों के बीच में यह बात होती थी कि एक साथ इकट्ठा मिलकर चलो ! कहीं वह गुंडा मिल न जाए और हर बार वह गुंडा हमारे स्कूल के रास्ते पर खड़ा होता था ! ”
पुरुष सूखे गले से बोला -“मुझे माफ कर दो । अब यह पुरानी बातें हो गई । अब मैं बूढ़ा हो चुका हूं ।”
स्त्री बोली -“मेरी जिंदगी के चार पांच साल तुम्हारी दहशत की वजह से आतंक के साए में जैसे गुजरे हैं। बहुत बार सोचा कि पढ़ाई छोड़ दूं। कहीं तुम कोई हरकत ना कर बैठो। बहुत बार मन में आया कि मम्मी पापा से तुम्हारी शिकायत करूं, लेकिन मालूम था कि बात का बतंगड़ बनेगा और उल्टा मेरी ही पढ़ाई छुड़वा दी जाएगी। स्कूल में प्रिंसिपल के पास जाने का भी कई बार मन करता था लेकिन तुम्हारा क्या होता ! बदनामी तो मेरी ही होती ।आज तुम भले और इज्जत दार बन कर बैठ गए हो लेकिन तुम्हारी हरकतों को केवल मैं नहीं स्कूल की सारी लड़कियां अच्छी तरह जानती हैं। आज भी अगर स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों से कोई बात कर ले तो वह तुम्हारा चेहरा देखकर बता देंगी कि तुमने किस तरह से उनकी जिंदगी को नर्क बना दिया था।”
पुरुष थोड़ा सा गुस्से में आया ,बोला -” मैंने तुम्हारे साथ कोई बलात्कार थोड़ी कर लिया था ? ”
स्त्री ने आंखों में अंगारे भरकर कहा -“क्या केवल बलात्कार करना ही सब कुछ होता है ? स्त्री के शरीर को छूना, उसे घूरना, उसका दुपट्टा छीन लेना ,रास्ता रोक लेना, किसी ना किसी रूप में क्या यह सब स्त्री के मान सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला कार्य नहीं है? क्या इसकी कोई सजा नहीं होनी चाहिए ?”
पुरुष का चेहरा पूरी तरह सफेद पड़ चुका था ।उसने कहा कुछ नहीं, लेकिन वह बदहवास हालत में पार्क से निकल कर अपने घर की तरफ भागा । स्त्री ने उसका पीछा किया और कहा-” तुम अब जब भी घर से बाहर निकलोगे, मैं तुम्हें तुम्हारा अतीत याद दिलाऊंगी । तुम्हारा जीना दूभर हो जाएगा और तुम कुछ नहीं कर सकोगे। ”
लेखक: रवि प्रकाश, रामपुर