कहानी – ‘अहसास’
इस बार नव वर्ष पर वो उमंग कहाँ, उसमे भी बुखार । इसीलिए जब चंदुआ ने चिल्लाता ”दीदी जलेबी, गर्म है ” तो मीनू मैंडम खिड़की बंद कर ली ।
घने कोहरे, कमरे का दरवाजा-खिड़की सब बंद । सो कमरे का अन्धेरा चीरने के लिए मीनू मैंडम ने तीन मोमबत्तियाँ जलायी । बंद खिड़की के बावजूद चन्दुआ की ‘जलेबी जलेबी’ वाली आवाज दो-चार बार फिर आई । अब मैडम उसको यह कैसे समझाये कि इस बार का नया साल हर बार की तरह नही है । पर वो उसको बेवकूफ नही मानती है ,लेकिन हर किसी के लिये हर किसी के संवेदना को समझना आसान थोड़े ही होता है । यही कारण हैं कि राधा बाई के ‘चाय-चाय’ की तरह चन्दुआ के ‘जलेबी-जलेबी’ से वो चीड़ नही रही थी ।
वास्तव में, चन्दुआ से सीखने को बहुत कुछ था । खुद पानी में भींगते हुए छाता पकड़कर डॉo साहब को घर लाता है, अपनी तीन साल की बहन को दिखवाने केलिए । पान की गुमटी चलाने वाला १२ साल के चन्दुआ को टी वी से ही पता चल गया था कि बच्चे के लिए टीके कितने ख़ास होते है । लेकिन न जाने गाँव के कितने BA और MA पिता इसे फालतू मानते हैं , डॉo की नौंटंकी वह भी पैसा वसूल ने के लिए । और तो और, इसकी बहन जब एक साल की थी तो माँ मर गयी, और बाप तो उसके भी तीन महीने पहले, ट्रक से कुचल कर । पूरा गाँव कहता था ‘बेटी मर जायेगी, अनाथ जो हो गयी है ।’ पर चन्दुआ , नाबालिक ही सही पर अपनी बहन के लिए माँ और बाप दोनों बन गया । कौन कहता हैं कि बाप बनने के लिए पुरुष और माँ बनने के लिए स्त्री ही होना काफी हैं । कुछ भी बनने केलिए ”अहसास ” होना चाहिए । रिश्ते ”अहसाह ” से बनते है । ये राकेश बाबू कुछ भी बन पाये । न दोस्त, न पति, न बिजनेस पार्टनर, अरे ऐसे लोग तो अच्छे दुश्मन भी नही बन पाते है ।
राकेश के बारे में मीनू मैडम कुछ और सोच ही पाती तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक देना शुरू कर दिया । दस्तक की आवाज इतनी तेज और लगातार थी की मैडम को यह पता चल गया की सिन्हा साहब आ गए । तीखी आवाज से बचने के लिए मैडम झट से उठी और दरवाजा खोल दी । सिन्हा जी को लगा की वो मेरी अगुआई में मुस्कुरा रही है । पर वास्तव में यह मुस्कुराहट थी या बुखार तेज होने की वजह से कुछ क्षणों के लिए उनके ओंठ थरथराई थी , यह तो वो ही जाने, पर कुर्सी की ओर इशारा कर खुद खिड़की खोलने चली गयी |