कहां बिखर जाती है
कहां बिखर जाती है
दुनियां की शान ।
कहां चले जाते है
ये दो पल के इन्सान।।1।।
अहम, द्वेष, ईर्ष्या
मतभेद, संग अहंकार ।
न जाने किधर जाते है
ये दो पल के इन्सान ।।2।।
सहेजा, संभाला कोशिश की
खाली हथेली का था मेहमान ।
न जाने रास्ता भूल गए
ये दो पल के इन्सान ।।3।।
“कविप्रकाश”