कहाँ तक गीत गाऊँ मैं,
कहाँ तक गीत गाऊँ मैं,
ग़रीबी के अमीरी के ।
मुझे मालूम है कटते,
नहीं दिन अब फ़कीरी के ।
करूँ क्या पर बताओ तो,
तमन्ना क्यों अधूरी है ?
मिले पद एक राजा सा,
हुनर देखें वज़ीरी के ।
दीपक चौबे ‘अंजान’
कहाँ तक गीत गाऊँ मैं,
ग़रीबी के अमीरी के ।
मुझे मालूम है कटते,
नहीं दिन अब फ़कीरी के ।
करूँ क्या पर बताओ तो,
तमन्ना क्यों अधूरी है ?
मिले पद एक राजा सा,
हुनर देखें वज़ीरी के ।
दीपक चौबे ‘अंजान’