कहाँ गया वह समय पुराना
कहाँ गया वो समय पुराना
सहेलियों का संग सुहाना ।
खट्टी – मीठी सारी बातें
करती सखियाँ दिन औ’ रातें ,
दूरी हों चिट्ठी लिखती थीं
मन की मन से सब कहती थीं ।
पर गूगल के इस नवयुग ने
किया सभी को बड़ा सियाना ।।
कहाँ गया वह समय पुराना…..
मिलकर बहनों सी बन जातीं
सुख – दुख में थीं दौड़ी आतीं ,
घर का घर से जुड़ता नाता
नेह तरू था बढ़ता जाता ।
सिंचित हो अब डिजी शक्ति से
हुआ तार्किक प्रेम तराना ।।
कहाँ गया वह समय पुराना…..
सखि मिलन की कड़ी होती थी
मधुर हिय से जुड़ी होती थी ,
मिली नहीं यदि थोड़े दिन तो
बहुत बिछुड़ने पर रोती थी ।
फेसबुकी आभासी जग से
सीखा झूठा साथ बनाना ।।
कहाँ गया वह समय पुराना…..
डाॅ रीता सिंह
चन्दौसी , सम्भल