कहाँ अब पहले जैसी सादगी है
कहाँ अब पहले जैसी सादगी है
महब्बत में कहीं तो कुछ कमी है
हुआ करती थी तेरे दर पे महफ़िल
फ़िज़ा क्यों अब वहाँ पर मातमी है
करो कुछ ज़िक्र मेरी बेरुख़ी का
तुम्हारी आँख क्या कुछ देखती है
महावीर उत्तरांचली