” कहर न अब ढाने देंगें ” !!
कहाँ जा रहे कारे बदरा ,
यों ना हम जाने देगें !
बिन बरसे ही चले गये तो ,
तुमको हम ताने देगें !!
सूख रहे हैं हलक हमारे ,
पैरों फटी बिवाई है !
धरती प्यासी , जीवन प्यासा ,
प्यास बनी दुखदाई है !
नभ से उतरो , नीचे आओ ,
मनमाना छाने देगें !!
कागज़ की नावें तेरा दी ,
मेंढक की शादी कर दी !
जीवित जन को देकर कांधा ,
राम नाम की रट कर दी !
किये टोटके , देव मनाये ,
कहर न अब ढाने देगें !!
कहीं बिगड़ते , कहीं बरसते ,
रंगत बदली बदली है !
मनमानी भी खूब हो गई ,
नीयत अभी न संभली है !
अपने हिस्से का पानी है ,
किसे नहीं पाने देगें !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )