कहमुकरी
कहमुकरी
निज संस्कृति का मान धरे।
शब्दों से उसके फूल झरे।
सोहे मस्तक प्यारी बिंदी।
क्या सखे सजनी ? ना सखे हिंदी।
साथ सभी के घुलमिल जाए।
पर जो उसको आँख दिखाए।
कर दे उसकी चिंदी-चिंदी।
क्या सखे सजनी ? ना सखे हिंदी।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद