कहते है मुझसे
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कहती है ये हवाएं मुझ से क्यों बैठी हो उदास,
आ चल तुझे अपने झोंको में उड़ा कर दुनिया की सैर कर दू।
कहती है ये नदियाँ मुझसे क्यों बैठी हो उदास ,
आ चाल तुझे अपने लहरो से ऊंचा उठा दे।
कहते है घुँगुरु मुझसे क्यों बैठी हो उदास,
आ चल तुझे फिर से आँगन में नाचना सीखा दे।
कहती है साईकल मुझ से क्यों बैठी हो उदास ,
आ चल तुझे फिर से सड़कों की नाप करना सीख दे।
कहती है मेरी अलमारी में रखी डायरी और पेन क्यों बैठी हों उदास ,
आ चल लिख दे अपने अल्फाजो को और दुनिया को अपना दीवाना बना दे दीवाना बना दे
★◆●अर्पिता पटेल●◆★