कहती गौरैया
क्यों भूल गए मोहे मेरे भैया
मैं तो तेरे आंगन की गौरैया
बच्चों का मन बहलाती
इधर उधर फुर्र हो जाती
बनाओ इमारत चाहे ऊंची
खिड़की एक रखो तो छोटी
मत काटो पेड़, लता की छैया
मैं तेरे आंगन की गौरैया..
कभी चौके का चक्कर था काटा
कभी मां ने भी तो दिया था आटा
घेर की शोभा वो कहती थी
बेड़े की रौनक, अच्छी लगती थी
मैं भी थी उस प्यार की छैंया
मैं तेरे आंगन की गैरिया….
कभी कूंप पर कभी डाल पर
हर मौसम में हर एक हाल पर
इस अधुनिकता का प्राणी पिस्ता
मैं भी तो तेरे जीवन का हिस्सा
तेरे हर किस्से की त थ थैया
मैं तेरे आंगन की गौरैया….
ईश रची इस सृष्टि का अंश हूं
मुझे बचा लो एक पंख बंश हूं
संस्कृति सनातन की पहचान
गाओ गौरैया कहते खलिहान
मेरी चीं चींची भी गीत गवैया
मैं तेरे आंगन की गौरैया….
याद करो बचपन अठखेली
तेरे जीवन की मै भी सहेली
तुम प्राणी श्रेष्ठ मैं नन्हीं जान
तुमसे मांगती अपना स्थान
पड़ती तेरे मैं अब पैंया
मैं तेरे आंगन की गौरैया….