कस्तूरी की तलाश (विश्व का प्रथम रेंगा संग्रह)
समीक्षित पुस्तक – “कस्तूरी की तलाश” (श्रृंखलित पद्य) सम्पादक, प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’ अयन प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रकाशन वर्ष – 2017, पृष्ठ 149
हिन्दी काव्य साहित्य को एक अनुपम उपहार
समीक्षक : डाॅ. सुरेन्द्र वर्मा
नए रास्तों की तलाश करने वाले श्री प्रदीप कुमार दाश ‘दीपक’ हाइकु विधाओं की खोज में रेंगा काव्य से टकरा गए और जापान से उसे भारत हिन्दी साहित्य में ले आए । हिन्दी में उन्होंने अपने वाट्सअप व फेसबुक समूह के हाइकु कवियों से श्रृंखलाबद्ध रूप से ये कवितायें लिखवाईं और उन्हें संपादित कर हिन्दी काव्य को परोस दिया । नाम दिया “कस्तूरी की तलाश’ । हिन्दी काव्य को उनका यह प्रयत्न एक अनुपम उपहार है ।
दीपक जी ने पुस्तक के अपने ‘पुरोवाक्’…में जापान की काव्य विधा, ‘रेंगा’ का एक सुबोध परिचय कराया है । उसके विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं है । संक्षेप में बताते चलें कि रेंगा एक समवेत श्रृंखला बद्ध काव्य है । यह दो या दो से अधिक सहयोगी कवियों द्वारा रचित एक कविता है । रेंगा कविता में जिस प्रकार दो या दो से अधिक सहयोगी कवि होते हैं उसी तरह् उसमें दो या दो से अधिक छंद भी होते हैं । प्रत्येक छंद का स्वरूप एक ‘वाका’ (या तांका) कविता की तरह होता है । रेंगा इस प्रकार कई (कम से कम दो) कवियों द्वारा रचित वाका कविताओं के ढीले-ढाले समायोजन से बनी एक श्रृंखला-बद्ध कविता है ।
रेंगा कविता की आतंरिक मन:स्थिति और विषयगत भूमिका कविता का प्रथम छंद (वह तांका जिससे कविता आरम्भ हुई है) तय करता है । हर ताँके के दो खंड होते हैं । पहला खंड ५-७-५ वर्ण-क्रम में लिखा एक ‘होक्कु’ होता है । (यही होक्कु अब स्वतन्त्र होकर ‘हाइकु’ कहलाने लगा है ।) वस्तुत: यह होक्कु ही रेंगा की मन:स्थिति और विषयगत भूमिका तैयार करता है । कोई एक कवि एक होक्कु लिखता है । उस होक्कु को आधार बनाकर कोई दूसरा कवि ताँका पूरा करने के लिए ७-७ वर्ण की उसमें दो पंक्तियाँ जोड़ता है । उन दो पंक्तियों को आधार बनाकर कोई अन्य दो कवि रेंगा का दूसरा छंद (तांका) तैयार करते हैं । कविता के अंत तक यह क्रम चलता रहता है । रेंगा को समाप्त करने के लिए प्राय: अंत में ७-७ वर्ण क्रम की दो अतिरिक्त पंक्तियाँ और जोड़ दी जाती हैं । रेंगा इस प्रकार एक से अधिक कवियों द्वारा रचित एक से अधिक तांकाओं की समवेत कविता है ।
‘कस्तूरी की तलाश’ रेंगा कविताओं का हिन्दी में पहला संकलन है । दीपक जी ने इसे बड़े परिश्रम और सूझ-बूझ कर संपादित किया है । एक पूरी कविता संपादित करने के लिए वह जिन सहयोगी कवियों को एक के बाद एक प्रत्येक चरण के लिए प्रेरित कर सके, वह अद्भुत है । कवियों को पता ही नहीं चला कि वे रेंगा कविताओं के लिए काम कर रहे हैं । उन्होंने इस रचनात्मक कार्य के लिए स्वयं को मिलाकर ६५ कवियों को जोड़ा । उनके एक सहयोगी कवयित्री का कथन है कि “एकला चलो” सिद्धांत के साथ गुपचुप अपने लक्ष्य को प्रदीप जी ने जिस खूबसूरती से अंजाम दिया, काबिले तारीफ़ है । सच, ‘समवेत’ कविताओं को आकार देने के लिए वे ‘अकेले’ ही चले और सफल हुए । कस्तूरी की तलाश में उनकी लगन, श्रम, और प्रतिभा वन्दनीय है |
जैसा कि बताया जा चुका है किसी भी रेंगा कविता का आरंभ एक होक्कु से होता है । संकलन में संपादित सभी रेंगा कविताओं के ‘होक्कु’ स्वयं प्रदीप जी के हैं । कविता के शेष चरण अन्यान्य कविगण जोड़ते चले गये हैं । कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतर रेंगा कवितायेँ ६ तांकाओं से जुड़कर बनी हैं ।
अंत में मैं इन रेंगा कविताओं में से कुछ चुनिन्दा पंक्तियाँ आपके आस्वादन हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ –
जीवनरेखा / रेत रेत हो गई / नदी की व्यथा // नारी सम थी कथा / सदियों की व्यवस्था (रेंगा,१)
नाजों में पली / अधखिली कली / खुशी से चली // खिलने से पहले / गुलदान में सजी (रेंगा ११)
बरसा पानी / नाचे मन मयूर / मस्ती में चूर // प्यासी धरा अघाई / छाया नव उल्लास (रेंगा २१)
गृह पालिका / स्नेह मयी जननी / कष्ट विमोचनी // जीवन की सुरभि / शांत व् तेजस्वनी (रेंगा ३०)
रंग बिरंगे / जीवन के सपने / आशा दौडाते // स्वप्न छलते रहे / सदा ही अनकहे (रेंगा ४०)
हरित धरा / रंगीन पेड़ पौधे / मन मोहते // मानिए उपकार / उपहार संसार (रेंगा ५१)
पानी की बूंद / स्वाति नक्षत्र योग / बनते मोती // सीपी गर्भ में मोती / सिन्धु मन हर्षित (रेंगा ६१)
पीत वसन / वृक्ष हो गए ठूँठ / हवा बैरन // जीवन की तलाश / पुन: होगा विकास (रेन्गा ७१)
देहरी दीप / रोशन कर देता / घर बाहर // दीया लिखे कहानी / कलम रूपी बाती (रेंगा ८१)
गाता सावन / हो रही बरसात / झूलों की याद // महकती मेंहदी / नैन बसा मायका (रेंगा ९०)
पौधे उगते / ऊंचाइयों का अब / स्वप्न देखते // इतिहास रचते / पौधे आकाश छूते (रेंगा ९८)
(उपर्युक्त पंक्तियाँ जिन सहयोगी कवियों ने रची हैं उनके नाम हैः – प्रदीप कुमार दाश, चंचला इंचुलकर, डा. अखिलेश शर्मा, रमा प्रवीर वर्मा, नीतू उमरे, गंगा पाण्डेय, किरण मिश्रा, रामेश्वर बंग, देवेन्द्र नारायण दास, मधु सिन्घी और सुधा राठौर )
मुझे पूरा विश्वास है, कि हिन्दी काव्य जगत दीपक जी के इस प्रयत्न की भूरि भूरि प्रशंसा करेगा और उसे रेंगा-पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा ।
– डाॅ. सुरेन्द्र वर्मा
(मो, ९६२१२२२७७८)
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