कस्ती धीरे-धीरे चल रही है
कस्ती धीरे-धीरे चल रही है
अंदर ख्वाहिशें मचल रही है
बादल भी बरस रहे हैं यहां
और धूप भी निकल रही है
✍️कवि दीपक सरल
कस्ती धीरे-धीरे चल रही है
अंदर ख्वाहिशें मचल रही है
बादल भी बरस रहे हैं यहां
और धूप भी निकल रही है
✍️कवि दीपक सरल