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11 Apr 2023 · 1 min read

कस्ती धीरे-धीरे चल रही है

कस्ती धीरे-धीरे चल रही है
अंदर ख्वाहिशें मचल रही है

बादल भी बरस रहे हैं यहां
और धूप भी निकल रही है

✍️कवि दीपक सरल

2 Likes · 326 Views
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