कश्मीरी पंडितों की पीड़ा (गीत)
#कश्मीरी पंडितों की पीड़ा (गीत)*
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मत पूछो यह कैसे छूटी काश्मीर की घाटी है
(1)
काश्मीर में विगत हजारों वर्षों से जो रहते
आदिकाल से काश्मीर की धरती अपनी कहते
बसा हुआ जिनकी साँसों में है झेलम का पानी
जिनके इर्द-गिर्द घूमी केसर की अमर कहानी
जिनको प्राणों से भी प्यारी काश्मीर की माटी है
मत पूछो यह कैसे छूटी काश्मीर की घाटी है
. (2)
क्रूर विभाजन की परछाई दिन- दिन गहरी पाई
सत्ता समझो पाकिस्तानी हाथों में ही आई
सन् सैंतालिस का दुख- पीड़ा नव्वे ने दोहराई
काश्मीर बन गया पाक की जैसे एक इकाई
दो राष्ट्रवाद में जली हिंद की साझे की परिपाटी है
मत पूछो यह कैसे छूटी काश्मीर की घाटी है
(3)
अपने ही घर से कश्मीरी पंडित गए निकाले
पाए लकवाग्रस्त सेक्युलर दिखने कहने वाले
घर को लूटा आग लगा दी वहशत भरे दरिंदों ने
नुचे पंख आवाज लगाई जैसे किन्हीं परिंदों ने
फिर से पाकिस्तान बनाने को जमीन ज्यों बाँटी है
मत पूछो यह कैसे छूटी काश्मीर की घाटी है
(4)
जाने कब धर्मांध विचारों से बाहर आएँगे
जाने कब कश्मीरी पंडित अपने घर जाएँगे
जाने कब दुर्भाग्य शिविर के भीतर से भागेंगे
जाने कब ताकत होगी, अधिकारों को माँगेंगे
पूछ रही है प्रश्न जिंदगी, जो शिविरों में काटी है
मत पूछो यह कैसे छूटी काश्मीर की घाटी है
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451