कवि मिथिलेश राय की सिलवटी कविताएँ (समीक्षा)
कवि मिथिलेश कुमार राय की कविताएँ बेहद मार्मिक, गंभीर, पर सिलवटी होती हैं। ‘बाल-किलकारी में मोबाइल-टोन भी दब जाता है’ के मार्फ़त कवि मिथिलेश कुमार राय अच्छा फरमाते हैं-
“क्षमा चाहता हूँ
सवेरे जब
आपका फोन आया
कि मैं बच्चे को
चुप कराने में लगा था ।
उसकी मम्मी अभी-अभी
उसे दूध पीलाकर
रसोई-घर की तरफ निकली थी।
अब मैं यह कैसे बताऊँ ?”
जिनके प्रसंगश: —
“मेरी सुबह की दिनचर्या
कितनी तंग रहती है
बच्चे के पास न बैठूं तो….
रोटी का आकार बिगड़ जाता है!
फिर कितना भी झटक कर चल लूं
काम पर लाल-पीले चेहरे
इंतज़ार में खड़े मिलते हैं !”
आगे भी कवि जी कहते हैं–
“यह सब देखना
किसे अच्छा लगता है?
डांटने वाले से भिड़ कर
पहली नौकरी कब की
निकल चुकी है?
अब बच्चे का मुंह
देखता हूँ तो
झट से मोबाइल उठाकर
बात करने का लोभ
दब जाता है ।”
सच की बानगी आगे भी द्रष्टव्य है, यथा–
“यह मैं सच कहता हूँ
कि बच्चों के साथ
रहने के क्षण में
कईबार तो
मोबाइल का टोन
सुनाई ही नहीं पड़ता!
वह उसकी किलकारी ही है
और मेरी खिलखिलाहट में
हाँ, कहीं मैं खो जाता हूँ !”