कवि को क्या लेना देना है !
, कवि को क्या लेना-देना है !
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दिन कब हुआ रात कब आई,कवि को क्या लेना-देना है,
सुवह शाम से जिसे न नाता,वह ही कवि है वह ही कवि है!
नेह-स्नेह की जहाँ न सीमा,केवल केवल अपनापन हो,
जहाँ टक-टकी शर्मिन्दा हो,वह ही छवि है वह ही छवि है!
अटल इरादे हों रवि जैसे,अपनी राह अग्रसर—–होना,
जो कि शीत से हार मान ले,वह क्या रवि है वह क्या रवि है !
हृदय हृदय से करें वार्ता,दुनियां तभी सु-फल देती है,
जभी लगे तन एक हो गये ,वही प्रेम की प्रति प्रति-कृति है !
जीवन का जहाँ महल खड़ा हो,मन संतोष खंभ के बल पर ,
यदि संतोष बिखर सा जाये,तब तो केवल क्षति ही क्षति है !
नारी के मन की सुन्दरता तन की गन्ध गन्ध ले उड़ कर,
अगर दिशाएँ ना महकीं तो,यह क्या रति है यह क्या रति है!
नर-नारी के मनोभाव ही,नव नव सृष्टि रचा करते हैं ,
इन में यदि अवगुंठन हो तो,समझो सृष्टि महा कुंठित है !
कवि शब्दों का जादूगर है,कवि शब्दों का आदि जनक है,
बम भी यही पुष्प भी यह ही,समझ न पाये वह जड़-मति है !
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आशु-चिंतन/स्वरूप दिनकर/आगरा
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