कवित्त और राष्ट्रवाद
कवित्त व राष्ट्रवाद
शायरी और कविता करते करते ,,अचानक से महसूस होने लगता है।
कुछ तो है….. जिसे मैं भूल रहा हूं,,कुछ हकीकत तो है जिसे लिखना चाहता था मैं,,और हां वही जिसे कहने के लिए विधि ने मेरे हाथ में कलम थमाया था कभी।
हां वही अज्ञात विषय ,जिसे समझना और समझने को प्रयास करना एक व्यक्ति को साधारण व्यक्ति से शब्द साधक बनाकर असाधारण और अप्रतिम बनाता है।
मैंने बहुत सारी रचनाएं लिखी ,, लोगों को पसंद भी आया और थोड़ा बहुत लोकप्रियता भी मिली,,
लेकिन अगर कोई मुझसे पूछे कि आप इस मुश्किल रास्ता को क्यों चुने?
तो शायद यह प्रश्न मुझे ख़ामोश कर देगा!!
मुझे लिखते हुए करीब आठ वर्ष हो गए,, लेकिन जब मैं अपने अंतः मन से पूछता हूं कि मेरे कवित्त का मूल क्या है? तो मेरे अंतर्मन में द्वंद की स्थिति बन जाती है।
आजकल पुस्तक प्रकाशित करना सरल है,,प्रकाशकों के लिए कविता का भाव कोई अर्थ नहीं रखता है। अब तो बिना बंदिश और बिना भाव के कविताएं और अमर्यादित शब्द संयोजन वाले रचनाएं भी आसानी से प्रकाशित हो जाती है।
लेकिन बिना किसी ओपचारिक निष्कर्ष के पुस्तक प्रकाशित करने से क्या लाभ होगा??
जिन्हें बड़ा साहित्यकार बनना है ,वो तो बिना उचित अध्ययन और शोध के भी ,उत्कृष्ट व्यापारिक प्रबंधन के बदौलत अपनी पुस्तक प्रकाशित करा रहे हैं,, और अच्छी कीमत पर बेच रहे हैं। लेकिन जिन्हें बड़ा बनना तुच्छ लगता है, अच्छा बनने के मुकाबले में ,,उनके लिए अपने हरेक कथन पर ओपचारिक निष्कर्ष तक पहुंचना अनिवार्य होता है ।
आज मैं अभिव्यक्ति में राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों पर जागरूक और सक्षम युवाओं का ध्यान चाहता हूं।
एक सभ्य, पढ़े लिखे व्यक्ति को राष्ट्रवाद और राजनीति में रुचि लेना चाहिए,राजनीति को अच्छे और सक्षम लोगों की आवश्यकता है।
सक्षम लोगों का राजनीति से दूर जाना राष्ट्र के लिए अकल्याणकारी सिद्ध होता है, और बात यहीं खत्म नहीं होती है,, बल्कि दुखद दृश्य देखना पड़ता है।
गुंडे ,तस्कर, व्याभिचारी प्रवृतियों के लोगों के आका शीर्ष सिंहासन पर विराजमान हो जाते हैं। देश की दशा विपरीत दिशाओं में फैलने लग जाती है।राष्ट्र का विकास रुक जाता है।
इस विनाशकारी काल चक्र से बचने का एक मात्र उपाय है कि आप राजनीति में राष्ट्र हित कार्य करने के लिए सशक्त नेतृत्व का चुनाव करें।
और इस नेतृत्व को समझने के लिए आपका राजनीति में रुचि रखना जरूरी है।
अगर आप सशक्त होकर चुनाव में भाग लेंगे तो आप निश्चित तौर पर सशक्त नेतृत्व को चुनने में कामयाब होंगे।
हां आपका सशक्त होना अर्थात् राजनीति के रहस्यों को समझना है ।
आप सशक्त हैं अर्थात् आप राजनीति के रहस्यों को समझते हैं ।
ऐसे में आपको ज्ञात होना चाहिए कि लाल बहादुर शास्त्री,बिक्रम सारा भाई इत्यादि व्यक्तित्वों की हत्या कैसे और किस हालत में हुई थी। तत्कालीन सरकार और अन्य उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों ने उक्त घटना में किस प्रकार से भूमिका निभाए। देश के प्रधान मंत्री किस पार्टी के थे यह विषय नहीं है। लेकिन यह शर्मनाक बात जरूर है कि आपने जिस पार्टी को चुना था उस पार्टी ने चुप्पी साध ली थी, आपके प्रधानमंत्री ताशकंद समझौता के बाद आपके देश जीवित नहीं लौटे बल्कि मृत लौटे।
उस परिस्थिति में भी अभीष्ट पार्टी को अपने सत्ता से मोह था, और इसीलिए उसने इस बात को उजागर नहीं किया ,कि भारत के सशक्त प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी हत्या क्यों और कैसे हुई ?
एक अंग्रेजी पढ़ी लिखी भारतीय कौम है, जो नाथूराम गोडसे को हत्यारा कह उचित और सार्थक बात करती है ।लेकिन वो कौम लाल बहादुर शास्त्री और अन्य कई प्रभाव शाली व्यक्तियों के हत्या का सच कहने और जानने से बचती है।
चलिए आप इतिहास मत जानिए ,आप मत समझिए कि सुभाष चंद्र बोस के लिए अंग्रेज़ और तत्तकालीन भारतीय प्रधानमंत्री के मध्य सिंहासन विनियम हुआ था।
लेकिन आप कुछ दस बारह साल पहले के राजनीतिक यादों को तो ताज़ा कर ही सकते हैं।
जी हां राजीव दिक्षित जी की हत्या संदिग्ध हालत में कैसे हुई इस बात को समझने के लिए आप पांच मिनिट की वीडियो क्लिप तो देख ही सकते हैं !! यूट्यूब तो रोज देखते होइएगा।
आप पंडित कमलेश तिवारी के मृत्यु पर सत्ता पक्ष और विपक्ष का टिप्पणी भी देख सकते हैं।
आप राम मंदिर निर्माण कार्य और धारा 370 , एन आर सी इत्यादि मुद्दों पर भी अध्ययन कर सकते हैं।
आप नए किसान कानून (जिसे कि विपक्ष के दवाब से बदल दिया गया) पर अध्ययन कर सकते हैं।
लेकिन जो भी हो,
मैं आपको यह नहीं कह रहा हूं कि भाजपा को वोट देना है, या कांग्रेस को ।मैं अपना मत अभिव्यक्त कर रहा हूं, कि अगर प्रणव मुखर्जी का नेतृत्व राष्ट्र को मिलता तो शायद उस कालखंड में राष्ट्रवाद डटी रहती। लेकिन उन्हें ससम्मान महामहिम बनाकर राजनैतिक पद से मुक्त कर सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजित कर दिया गया।
वो पार्टी का फैसला था या कि राष्ट्र की आवश्यकता??
जनता ने तो पार्टी चुनी नेतृत्त्व खोजना पार्टी के ऊपर निर्भर करता है।
खैर आप जागरूक और सभ्य समाज के लोग हैं ,,आप उन्नत राष्ट्रवाद के तरफ़ जाकर देश हित में कार्य करेंगे मैं विश्वस्त हूं।
लेकिन राजनैतिक गतिविधियों पर नज़र रखना भी अति आवश्यक है।
नज़र रखिए ,,,,
हां नज़र रखना सरल नहीं है अध्ययन आवश्यक होगी ,, सो करिए।।
दीपक झा “रुद्रा”