कविता –
हादसे यूँ ही अब नही होते
आपके जैसे सब नही होते
ख़ुद से टकराके बिखर जाता हूँ.
सामने आप जब नही होते
आप और हम कही नही होते
कुछ न होता जो रब नही होते
रास्ते यूँ तो भटकने देते नही
मोड़ उनपर भला कब नही होते
‘महज़ ‘ये रस्म बोलने का नही
वो भी है जिनके लब नही होते