कविता ….
कविता ….
कविता !
तुम न होती
तो प्रेम कभी
प्रस्फुटित ही न होता
शब्द गूंगे हो गए होते
भाव
शून्य हो
व्योम में खो गए होते
तुम ही बताओ
हृदय व्यथा के बंधन
कौन खोलता
दृग की भाषा को
कौन स्वर देता
लोचन
शृंगारहीन रह गए होते
आधरतृषा
अनुत्तरित रह गयी होती
एकाकी पलों में
अभिलाषाओं की गागर
रिक्त ही रह जाती
प्रेम सुधा
एक सुधि बन जाती
हर श्वास
एक सदी सी बन जाती
सच !
कविता
तुम सृष्टि की
वो अद्भुत देन हो
जो जीवन को श्वास देती है
जीने का विशवास देती है
कभी श्रृंगार तो कभी
अंगार से
जीवन रंग देती हो
कविता !
तुम हो तो
भाव देह में प्राण हैं
अन्यथा
जीवन
एक अनंत विश्राम का
अदृश्य विराम है
सुशील सरना