कविता
प्यार दान
ईश ने दिया मुझे सुपात्र के लिए।
सत्य सत्व शिष्ट सुष्ठ का भला किया।।
पात्र जान ईश ने प्रसाद में दिया।
पात्र खोजता रहा बढ़ा चला गया।।
पात्रता अमूल्य है इसे समझ सदा।
योग्य देख प्यार से मिला चला गया।।
दान में मिला अपार प्यार के लिए।
शील वीर धर्म धीर देखता गया।।
प्यार दान के लिए सुयोग्य मात्र चाहिए।
शुभ्र शांत दिव्य मूर्ति खोजता गया।।
राह में मनुष्यता जहाँ कहीं दिखी खड़ी।
प्यार से सँवारता उसे चला गया।।
दिव्य धाम देख रुक सभी मनुष्य से मिला।
एक एक भव्य सभ्य रोकता गया।।
प्यार दान के लिए मिला मनुज शरीर है।
जिंदगी अमोल को सजा चला गया।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।