कविता
तेरा रूप
मापनी : 2221 2221 2221 222
कुल मात्रा भार 27
तेरा रूप मोहक है बहुत ही मस्त लगता है।
सारे लोक में अद्भुत मनहरण दिव्य दिखता है।।
भाते हो सभी को तुम बहुत दीवानगी तुझमें।
आये हो फरिश्ता बन दिखे मधु वानगी तुझमें।।
आते हो जिधर से तुम गमकती राह हँसती है।
गाते गीत अति माधुर निगाहें खींच उठती हैं।।
अलबेला रसिक भावुक सहज शालीन प्रिय मुखड़ा।
प्यारा भव्य अति कोमल मृदुल संवाद में ज़कड़ा।।
पीला रंग पावन में सजे विस्तार पाते हो।
हमराही बने चलते सदा शिव गीत गाते हो।।
भोला रूप अति मादक जहाँ चलते वहीं दिखते।
तेरी बात अनुपम सुन तुम्हारी बात सब करते।।
योद्धा बन निकलते जब सभी इक टक तुझे देखें।
प्याला प्यार सचमुच हो तुझे संसार य़ह देखे।।
मदमाता सहज यौवन लुभाता विश्व सारे को।
आते दौड़ते तारे गगन से देख प्यारे को।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।