कविता
दहेज
दहेज मोल भाव को विखंड कीजिए।
दहेज मुक्त व्याह का प्रवंध कीजिए।
रहे न लोभ लेश मात्र काम जीतिए।
उदार मन रहे सदैव धार दीजिए।
उदाहरण बनो सदा विवाह धर्म यज्ञ है।
हृदय सदा सुदान है महान प्रेम यज्ञ है।
दयालुता कृपालुता सहानुभूति यज्ञ है।
विचार शुद्ध सत्व भाव प्रीति दान यज्ञ है।
दहेज प्रेम से नहीं मनुष्य का विकास है।
दहेज लालची हृदय घृणित बड़ा उदास है।
जिसे न मोह अर्थ से वही सहज उजास है।
बँधा जो अर्थ चक्र में बना सदैव दास है।
सदैव बेटियाँ दहेज सृष्टि मूल्य अर्थ हैं।
नहीं वरेण्य है कदापि जो पतित अनर्थ है।
मनुष्य लोभ फाँस में फंसा सदैव व्यर्थ है।
जिसे न अर्थ लोभ है वही विराट अर्थ है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।