कविता
[03/01, 12:11] Dr.Ram Bali Mishra: विधाता (मुक्तक)
विधाता बनाता वही भाग्य लिखता।
वही भूमि गढ़ता वही व्योम रचता।
उसी का बनाया हुआ य़ह जगत है।
वही सृष्टिकर्त्ता सकल कर्म करता।
वही देव ब्रह्मा वही विष्णु शंकर।
वही है मुरारी वही रामचंदर।
वही सर्व व्यापक स्वयंभू अजन्मा।
वही सर्व शाश्वत अनंतिम अगोचर।
वही ज्ञान ज्ञानी सहज दिव्य दाता।
वही है अलौकिक सदा लोक भ्राता।
बना भव्य मंगल सजाता सकल को।
वही शैल सरिता प्रकृति गीत गाता।
वही चाँद सूरज वही है सितारा।
उसी का बनाया हुआ सर्व प्यारा।
न लेता न देता बना विश्वकर्मा।
बना लोकरंजक स्वधर्मी हमारा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/01, 17:40] Dr.Ram Bali Mishra: विवेक (पंचचामर छंद )
विवेकशील भावना विशुद्ध सत्य कामना।
सदैव उच्च याचना सुभद्र शील पावना।
मनुष्यता मरे नहीं डरे सदैव वासना।
दिखे न दीनता असत्य शुभ्र भाव मानना।
विनीत भव्य नीर क्षीर चारु शव्द तीर हो।
रहे सदैव बात चीत में सुगंध खीर हो।
गुहार न्याय की सदा विचार शुद्ध नीर हो।
मनुष्यता कृपालुता दयालुता सुधीर हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/01, 18:20] Dr.Ram Bali Mishra: प्रेम का पाठ (मुक्तक)
पढ़ाते चलो प्रेम का पाठ सबको।
दिखाते रहो स्नेह का रंग सबको।
मिले हर पथिक का बनो स्नेह संबल।
जगाते सजाते चलो मित्र सबको।
मनुज की निशानी सदा प्रेम पावन।
मनुष्यों!उठो बात हो नित लुभावन।
करो मत हिचक गर्मजोशी दिखाओ।
दिखे सिन्धु निर्मल हृदय में सुहावन।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/01, 10:03] Dr.Ram Bali Mishra: परम्परा (पंचचामर छंद )
परम्परा फले बढ़े बुजुर्ग मेहमान हो।
निरीह जान लो नहीं सदैव योगदान हो।
मनुष्यता को मारना अनर्थ कृत्य जान लो।
अमानवीय भाव को कुकृत्य कर्म मान लो।
दयालुता कृपालुता सदैव स्वस्थ रीति है।
बुजुर्ग की सराहना सदैव दिव्य प्रीति है।
नकारना बुजुर्ग को अतुल्य घोर पापा है।
अमानुषी असभ्यता मलीन नाम जाप है।
जहाँ नहीं विचार शुद्ध रो रहा बुजुर्ग है।
मरा हुआ अशुद्ध गेह दास रूप दुर्ग है।
परंपरा न त्यागना बुजुर्ग आत्म देह है।
उसे न छोड़ना कभी बना स्वयं विदेह है।
यही पुराण रीति नीति मानवीय गीतिका।
बनी रहे अज़ानबाहु दीर्घ काल पीतिका।
अशोभनीय आदतें उखाड़ फेंक दो चलो।
अनीति हो कभी नहीं दया करो सदा फलो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/01, 12:44] Dr.Ram Bali Mishra: विकल्प (पंचचामर छंद )
मनुष्य बुद्धिमान ही तलाशता विकल्प को।
करे सदैव पूर्ण कार्य ले रखे विकल्प को।
नहीं विकल्प पास में अधीरता बनी रहे।
सुधीर ले विकल्प हाथ वीरता सुखी रहे।
विकल्प को तलाशना तरासना विवेक है।
प्रकल्प सिद्धि के लिए पवित्र कल्प नेक है।
जहाँ न ज्ञान कोश है वहाँ नहीं विकल्प है।
बिना विशेष अर्थ के लता निरीह कल्प है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/01, 16:13] Dr.Ram Bali Mishra: पराया (विधाता छंद )
जिसे माना कभी साथी पराया भाव सा देखा।
नहीं है प्यार का रिश्ता नहीं है नेह की रेखा।।
बड़ा मासूम जो था वो बड़ा शैतान सा होगा।
नहीं थी कल्पना ऐसी नहीं इंसान सा होगा।।
निगाहें फ़ेर लेता है बड़ा उस्ताद काला है।
नहीं है भाव का भूखा गले में वज्र माला है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/01, 17:04] Dr.Ram Bali Mishra: नजर
नजर से नजर को मिलाते चलेंगे।
मधुर गीत हरदम सुनाते रहेंगे।।
बहुत प्यार करते निभाते चलेंगे।
मिलन भाव पावन सजाते रहेंगे।।
मलिन प्यार होगा कभी भी नहीं रे।
चमक बन मचलता करे गान प्यारे।।
मलय चंदना सी गमकती रहेगी।
सदा प्रीति निर्मल दमकती चलेगी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/01, 18:14] Dr.Ram Bali Mishra: माँ सरस्वती की वंदना
सरस्वती समाधिका सुलेखनी सुसाधिका।
विराट ब्रह्म दामिनी सुहागिनी सुवाचिका।।
सनातनी परम्परा अनादि स्तोत्र गामिनी ।
विलक्षणा विचारिका अनंत धाम स्वामिनी।।
पवित्र वेद ज्ञान यज्ञ माननीय शारदे !
विनम्र मातृ शिव विवेक धन्य मूर्त ज्ञान दे।।
सुलोचनीय शक्ति मां प्रतीति प्रीति काव्य मां।
असीम ओजपूर्णता विखेरती सरोज मां।।
सदैव ज्ञान प्रेम दान स्नेह दान दीजिये।
प्रदान स्वस्ति चिह्न कर सहर्ष गोद लीजिये।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/01, 19:33] Dr.Ram Bali Mishra: सत्य की सराहना
सत्य की सराहना सदैव मित्र कीजिए।
प्यार सत्य से सदा यही सुमंत्र लीजिए।।
सत्यता अमूल्यवान भाव को जगाइए।
गीत सत्य का सदैव लोकहित में गाइए।।
सत्यता टिकी हुई विराट हृद प्रदेश में।
सत्य प्राण से बड़ा सदैव ईश वेश में।
मारना असत्य को परम पुनीत कर्म है।
सत्य को नकारना बहुत बड़ा अधर्म है।।
कारवां चले सदैव सत्य की पुकार पर।
सत्य रथ बढ़ा करे सुसभ्य की गुहार पर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/01, 09:40] Dr.Ram Bali Mishra: तोहफा
खुश हो कर मन देता उसको।
तोहफ़े में उपहार प्रेम से।।
जन्म दिवस या शुभ अवसर पर।
देता मोहक वास्तु नेह से।।
जो अपने होते हैं उनको।
तोहफा देते लोग खुशी में।।
यही भेंट है हृदय मिलन की।
मिलती सुन्दर चीज़ खुशी में।।
मन आँगन की अगड़ायी में।
प्यार बहुत मुस्काता रहता।।
इच्छा मन में एक यही है।
तोहफे में दिल मधुर चहकता।।
प्रेम पुष्प यह मधु मनमोहक।
तोहफा दिल को सदा जीतता।।
जो देता उसका उर प्रेमिल।
भावों में हर समय बीतता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/01, 11:16] Dr.Ram Bali Mishra: हमारे राम आये हैं
(गीत)
चलेंगे आज देखेंगे,हमारे राम आये हैं।
वही हैं चार धामों के,महेश्वर ब्रह्म ज़न नायक।
सदा करते सगुण वंदन,अवध के लोक मधु गायक।।
करेंगे स्पर्श चरणों का,हमारे पाप कट जाएं।
खुलेगा भाग्य दरवाजा,प्रभू उर में समा जाएं।।
चलेंगे आज देखेंगे,हमारे राम आये हैं।
प्रभू का स्नेह मिल जाये,यही मन में तमन्ना है।
चरण रज पा खिले मस्तक,तभी आनन प्रसन्ना है।।
सदा प्रभु राम की संगति,उन्हीं पर शीश झुक जाये।
उन्हीं में मन रमे हरदम,उन्हीं का गीत हम गायें।।
चलेंगे आज देखेंगे, हमारे राम आये हैं।
अवध शोभा निराली है,उतर कर स्वर्ग आया है।
प्रभू के दर्श की खातिर,सकल ज़न लोक आया है।।
यहाँ खुशियाँ चहकती है,परिंदे मस्त हैं दिखते।
यहीं साधू बहुत खुश हैं,चरित श्री राम का लिखते।।
चलेंगे आज देखेंगे,हमारे राम आये हैं।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/01, 13:09] Dr.Ram Bali Mishra: अधूरा प्यार (सरसी छंद )
जन्म जन्म का प्यार अधूरा,इक दिन लेगा वह अवतार।
इसमें कुछ संदेह नहीं है,मिल जायेगा अपना प्यार।।
माने कोई भले नहीं य़ह,किन्तु सत्य यह दैवी बात।
मिलने का मतलब य़ह होता,होती नहीं पुरानी रात।।
दिल में बैठा नहीं निकलता,चाहे युग का हो संहार।
इक युग ऐसा भी आता है,जो मिलवाता असली प्यार।।
आज अधूरा जो लगता है,सदा सदा के लिए अधूर।
घटक अधूरा यह बतलाता,निश्चित हो जायेगा पूर।।
चेतन मन से धूमिल हो कर,अवचेतन मन में वह लीन।
सदा प्रज्वलित वह रहस्यमय,उसको मानो कभी न दीन।।
ईश्वर की है रीति निराली,पूरा करते हैं हर काम।
प्यार अधूरा पूर्ण कराकर,तब लेते विश्राम।।
त्रेता युग की लता बेलियाँ,जिन्हें राम से प्यार अपार।
बनीं गोपियाँ द्वापर युग में,मिला कन्हैया का मधु प्यार।।
जब दर्शन हो मन मिल जाये,हो जाता है अद्भुत प्यार।
कभी अधूरा नहीं रहा है,मिल जाता मनवांछित यार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/01, 17:02] Dr.Ram Bali Mishra: दिल मस्ताना (शुभांगी छंद )
दिल दीवाना,अति मस्ताना,प्यारी जगती,पास सदा।
खोजा करता,लक्ष्य चतुर्दिक,बड़े प्रेम से,शांतिशुदा।।
मन है कोमल,अतिशय निर्मल,चाह रहा है,प्रीति वरण।
मन की इच्छा,पूरी होगी,निश्चित जानो,अंतिम रण।।
मन करता है,दिल कहता है,मिल जाये अब, क्षितिज परी।
हो जायेगा,उर अति शीतल,दिखे हमेशा,भूमि हरी।।
हो मनभावन,स्नेह सुहावन,दिखे दिलेरी,अति प्रिय कर।
एकीकृत हो,प्रेम समुच्चय, आयोजित हो,मधुर खबर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/01, 13:23] Dr.Ram Bali Mishra: घेरती मनुष्य को अनादि से दरिद्रता।
मापनी :212 121 212 121 212
घेरती मनुष्य को अनादि से दरिद्रता।
झेलती कराहती पुकारती विपन्नता।।
छोड़ती न साथ है न हाथ को असभ्यता।
चूमती सदैव माथ प्रेम से असत्यता।।
दीन हीन भावना कभी न साथ छोड़ती।
जिंदगी विगाड़ती सदैव अश्रु पोछती।।
अर्थहीनता बुरी प्रवृत्ति लालची बुरी।
अर्थ लोभ भी बुरा अनर्थ की यही छुरी।।
वंदनीय सत्यता विराट भाल सभ्य है।
सत्यता बिना मनुष्य घोर निंद्य तथ्य है।।
नीर क्षीर ज्ञान धन्य सद्विवेक रूप है।
जो न ज्ञान विज्ञ है वही निरा कुरूप है।।
मूल्य को नकारता मनुष्य आज दीखता।
सोचता दरिद्र सा अशौच शब्द सीखता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/01, 16:12] Dr.Ram Bali Mishra: आत्मचेतना
आत्मचेतना बिना मनुष्य अस्थि चर्म है।
जानता कभी नहीं मनुष्य का स्वधर्म है।।
मानता न आत्म को परानुभूति है नहीं।
नर्क द्वार सा दिखे सहानुभूति भी नहीं।।
आत्म के प्रभाव में मनुष्य दिव्य द्रव्य है।
आसमान सा महान लोकमान्य सभ्य है।।
चाह में सदा रहे स्वतन्त्र ज्ञान याचना।
प्रेममूर्तिमान सा पवित्र काम्य भावना।।
आसुरी प्रवृत्ति त्याग भोग रोग दूर है।
संपदा अकूत त्याज्य मोहमुक्त घूर है।।
आत्म वंदना सदैव ब्रह्म पूज्य स्तुत्य हैं।
लोक की सहायता कवित्त विम्ब तुल्य है।।
प्रज्वला मनुष्यता परार्थ कामना सदा।
शांतचित्त मोहिनी विराट भावना अदा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/01, 09:23] Dr.Ram Bali Mishra: मुलाकात (मुक्तक)
मुलाकात होगी बड़ी बात होगी।
निगाहें मिलाकर मधुर बात होगी।
शिकायत कभी भी नहीं हम करेंगे।
मुलाकात में हर सुखद बात होगी।
चलेंगे नदी तीर यमुना किनारे।
कहीं बैठ कर मुस्कराएँगे प्यारे।
मिलन पूर्णकालिक रहेगा हमेशा।
जियेंगे सदा नित्य तेरे सहारे।
मुलाकात में प्रेम कविता लिखेंगे।
सभी शब्द अक्षर सुघर सा दिखेंगे।
भरेंगे चटक रंग बनकर चितेरा।
रहेंगे सहज स्नेहगीता पढ़ेंगे।
नहीं हो बनावट यही भाव होगा।
करेंगे मचलते सदा प्रेम योगा।
अनंतिम समय तक यही सिलसिला हो।
हृदय से हृदय का मिलन दिव्य होगा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/01, 10:24] Dr.Ram Bali Mishra: कुंडलिया
प्यारा मानव है वही,जिसका सच्चा प्यार।
विचलित होता है नहीं,सदा सरस रस धार।।
सदा सरस रस धार,प्रेम की वगिया सिंचित।
मंहके उर के पुष्प,मन वदन हो अति हर्षित।।
कहें मिश्र कविराय,हाथ में उसके सारा।
जो पाता है प्यार,उसी का जग है प्यारा।।
प्यारा मन उसका सहज,जिसके निर्मल भाव।
स्नेहिल उर्मिल बोल से,डाले सुखद प्रभाव।।
डाले सुखद प्रभाव,नहीं है कोई दुश्मन।
सब हैं उसके मित्र,सभी अति उत्तम सज्जन।।
कहें मिश्र कविराय,हृदय कोमल मधु न्यारा।
पाता वह सम्मान,विश्व है जिसको प्यारा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/01, 13:18] Dr.Ram Bali Mishra: गुरु बिन कभी न ज्ञान (दोहे)
गुरु चरणों की प्रीति से,मिलते सारे ज्ञान।
गुरु वसिष्ठ के चरण रज,से रघुवर विद्वान।।।
श्रद्धा अरु विश्वास ही, गुरु के केवल नाम।
गुरु देता है प्यार से,शिशु को विद्या धाम।।
जो रखता है छल कपट,उसका असफ़ल ज्ञान।
निर्मल मन पावन मनुज,बनता सहज सुजान।।
जिसको प्रिय गुरुवर प्रवर,वहीं ज्ञान का पात्र।
जो करता अपमान है,निश्चित वही अपात्र।।
बिना तपस्या त्याग के,कभी न मिलता ज्ञान।
गुरु जिमि मौलिक स्रोत से,मिलता विद्यादान।।
गुरु की संगति उच्चतम,गुरु ही ज्ञान प्रकाश।
गुरु के आशीर्वाद से,शिशु चूमे आकाश।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/01, 16:15] Dr.Ram Bali Mishra: अमृत वर्षा (अमृतध्वनि छंद )
अमृत वर्षा नेह की,भींग रहा मन गेह।
अजर अमर उर प्रीति से,जरा नहीं संदेह।।
जरा नहीं संदेह,हृदय में,स्पन्दन होता।
मन प्रेमाश्रित,तन बहु हर्षित,स्वप्न बीज बोता।।
मन में हर्षण,मधु आकर्षण,सावन सा चित।
पावस मौसम,घर में आ कर,देता अमृत।।
अमृत वाणी में दिखे,फलदायक अवतार।
अति आकर्षित सकल ज़न,देखत मधुरिम प्यार।।
देखत मधुरिम प्यार,दिवाली,सजती लगती।
भावुकता ही,सर्व विराजे,मोहित करती।।
जिसका जैसा,संचित रहता,अति पावन कृत।
वह वैसे ही,पा जाता है,बोली अमृत।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/01, 17:01] Dr.Ram Bali Mishra: ज्ञान (वीर रस)
धीरे धीरे चलते रहिए,सुन लेंगी छंदों के नाम।
मिल जायेगा ज्ञान निरंतर,तुझको करता आज सलाम।।
गुरु की कृपा वृष्टि जब होगी,पा जाओगे विद्या धाम।
मत चिंता कर मेरे प्यारे,होगा तेरा उज्ज्वल नाम।।
बहुत विलक्षण तेरा गुरु है,दे देगा अपना सब ज्ञान।
कभी छोड़ कर नहीं भागता,रखता शिष्यों का है मान ।।
बड़े भाग्य से गुरु मिलता है,देता है सच्चा गुरु मंत्र।
कभी नहीं पीछे हटता है,सिखला देता विद्या तंत्र।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/01, 17:38] Dr.Ram Bali Mishra: थका हुआ मन दीवाना (शुभांगी छंद )
लिखते लिखते,थका हुआ मन,विचलित होता,सच मानो।
सो जाने की,अब इच्छा है,चूर हुआ तन,य़ह जानो।।
बात करो मत,अब तुम चुप रह,अब सोने को,तन कहता।
इतना लिख लिख,मिलता क्या है,पेट न भरता,तन ढलता।।
दुनिया हँसती,कवि हृदयों पर,बड़े प्रेम से,मनमाना।
फिर भी कविउर,नहीँ मानता,कविता पर ही,दीवाना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/01, 18:17] Dr.Ram Bali Mishra: धूल चटा दो
धूल चटा दो उस लोफर को,जिसमें केवल स्वांग भरा है।
करता कुछ भी नहीं मूर्ख है,भीतर से वह सदा डरा है।।
अपनी हेठी सदा दिखाता,चढ बढ़ कर बातेँ करता है।
होती जब है सहज चढाई,डर कर पीछे वह भगता है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/01, 20:26] Dr.Ram Bali Mishra: गुरु से प्रेम
मात्रा भार 15/15
जो गुरु से करता है प्यार,कर लेता वह गंगा पार।
गुरु चरणों को करके स्पर्श,देखे शिष्य ज्ञान का द्वार।।
बड भागी वह शिष्य महान,जो गुरु का है सेवादार।
बन जाता वह विज्ञ सुजान,विद्या का है वह हकदार
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/01, 10:39] Dr.Ram Bali Mishra: राम आगमन (चौपई/जयकारी छंद )
राम आगमन होगा आज।
पूरे होंगे सारे काज। ।
रामचन्द्र सीता का साथ।
हम सब होंगे आज सनाथ।।
अवधपुरी में हर्षोल्लास।
धार्मिकता का मधु अहसास।।
भाग गये सब राक्षस लोग।
साधु लगाते प्रभु को भोग।।
फिर से राम लिये अवतार।
ज़नरंजन अति प्रिय करतार।।
समदर्शिता भरी है खूब।
राम गंग में जाओ डूब।।
सजे राम का प्रिय दरबार।
करो राम का सुखद प्रचार।।
अविनाशी प्रभु राम सहाय।
मस्त रहे मन प्रभु पर धाय।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/01, 17:38] Dr.Ram Bali Mishra: सोच ( वीर रस)
गंदी सोच सदा राक्षस घर,पावन चिंतन में हैं राम।
गंदे चिंतन से अपना मुख, काला करता अघ वदनाम।।
निर्मल पावन सोच मनुज का,अति उत्तम मोहक वरदान।
पर उपकारी कर्मों से ही,मिलता रहता है सम्मान।।
भूख लगी है जिसे प्यार की,मिल जाता है उसको प्यार।
जिसके मन में घृणित भाव है,वह दूषित मानव साकार।।
दिल को साफ स्वच्छ जो रखता,उसका मधुरिम है दीदार।
सबको वह सम्मोहित करता,रचता है स्नेहिल संसार।।
गैरों के सुख से खुशियां जो,सदा मनाता वही महान।ईर्ष्या से जो भरा हुआ है,उसे बचायेंगे भागवत।।
नफरत का है कूप भयानक,गिर कर रोता मनुज अपार।
नहीं निकल पाता दलदल से,पडती है चौतरफा मार।।
शुचिता जिसके रग रग में है,उसके सुन्दर दिव्य विचार।
वही काम्य प्रिय शोभित मानव,वंदनीय उर्मिल आचार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/01, 19:09] Dr.Ram Bali Mishra: गुरुमुख (चौपई /जयकारी छंद )
गुरु मुख से मधु रागी ज्ञान।
सर्व श्रेष्ठ गुरु परम महान।।
गुरु बिन मन है सदा अधीर
वही बनाता शिशु को वीर।।
गुरु के मुख में प्रेम अपार।
देते शिशु को शुद्ध विचार।।
गुरु रसना पर विद्या ज्ञान।
वह ईश्वर के तुल्य महान।।
गुरु ब्रह्मा अरु विष्णु महेश।
राम लखन में सहज प्रवेश।।
सच्चे दिल के सदा चितेर।
देते उत्तम ज्ञान उकेर।।
अति सम्मोहक विद्या दान।
देते गुरुवर सच्चा ज्ञान।।
ईश्वर से वे देत मिलाय।
शुभ्र ज्ञान को सदा पिलाय।।
गुरु मुख से निकला हर भाव।
देता शिशु को शीतल छांव।।
सभी शब्द में ब्रह्म अनाम।
ज्ञान रत्न देता विश्राम।।
सच्चा शिष्य बने विद्वान।
गुरु महिमा अनुपम विज्ञान।।
हर गुरु में वसिष्ठ का भान।
गुरु ऋषि मुनि की है संतान।।
गुरु भक्तों पर गुरु का ध्यान।
गुरु मुख में हैं श्री भगवान।।
पूजनीय गुरु का हो दर्श।
गुरु ही सर्वोत्तम आदर्श।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/01, 19:10] Dr.Ram Bali Mishra: गुरु वाणी (चौपई /जयकारी छंद )
गुरु ब्रह्मा अरु विष्णु महेश।
राम लखन में सहज प्रवेश।।
सच्चे दिल के सदा चितेर।
देते उत्तम ज्ञान उकेर।।
अति सम्मोहक विद्या दान।
देते गुरुवर सच्चा ज्ञान।।
ईश्वर से वे देत मिलाय।
शुभ्र ज्ञान को सदा पिलाय।।
गुरु मुख से निकला हर भाव।
देता शिशु को शीतल छांव।।
सभी शब्द में ब्रह्म अनाम।
ज्ञान रत्न देता विश्राम।।
सच्चा शिष्य बने विद्वान।
गुरु महिमा अनुपम विज्ञान।।
हर गुरु में वसिष्ठ का भान।
गुरु ऋषि मुनि की है संतान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/01, 20:35] Dr.Ram Bali Mishra: कलियुग में त्रेता युग आया (स्वर्णमुखी छंद )
कलियुग में त्रेता युग आया।
राम आगमन अवधपुरी में।
घर घर बाजे ढोल पुरी में।
राम अवतरण अति मन भाया।
अति प्यारा है अवध राम को।
अवध बिना श्री राम दुखी हैं।
आ कर अति प्रिय अवध सुखी हैं।
चाहत में है अवध राम को।
रही उदासी अवध क्षेत्र में।
अब आये हैं राम अवध में।
विष्णु राम फिर जन्म अवध में।
राम भाव है अवध क्षेत्र में।
सधवा हुआ अवध अब निश्चित।
आये राम अवध ज़न हर्षित।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/01, 11:51] Dr.Ram Bali Mishra: महफिल (शुभांगी छंद )
आय़ा प्यारा,दिल का तारा,खुशियाँ लाया,महफिल में।
बहुत निराला,भोलाभाला,रहता है नित,प्रिय दिल में।।
महफ़िल मोहक,सजी हुई है,दिलवर आया,मस्ताना।
सुन्दर गायक,उर्मिल नायक,गाता मधुरिम,प्रिय गाना।।
बड़े बड़े हैं,लोग यहाँ पर,एक एक से,बढ़ चढ़ कर।
किन्तु यहाँ पर,सिर्फ वही है,एक अकेले,मधुर सुघर।।
प्यारा प्यारा,मीत हमारा,महफिल नायक,सुखकारी।
बसा हुआ है,मन मन्दिर में,इस महफिल का,गिरिधारी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/01, 13:39] Dr.Ram Bali Mishra: अतिशय प्यारे राम हमारे (शुभांगी छंद )
अतिशय प्यारा,नाम तुम्हारा,दर्शनीय हो,मन मोहक।
रक्षा करते, शिक्षा देते,एक मात्र हो,ज़न पोषक।।
आदर्शों के,संस्थापक हो,अति प्रिय कोमल,मृदुल सदा।
शांति दूत हो,कौशल्या के,दिव्य पूत हो,मधु शब्दा।।
तेरा जीवन,लोक समर्पित,देते शुभ गति,नित प्यारी।
सदा दयालू,महा कृपालू ,दीनबंधुता,अति न्यारी।।
अतुलित प्यारे,राम हमारे,अनुपम शोभा,मनहारी।
अपने भक्तों,में वे रमते,रामचन्द्र जी,शिवकारी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/01, 15:04] Dr.Ram Bali Mishra: डॉ0रामबली मिश्र:एक परिचय
हरिहरहरपुर है गाँव सुहावन,
रामबली है नाम लुभावन।
धूप खिलेगा चमक खेत में,
सुनो वहाँ की बात गीत में।
गंगा की लहरों में जीवन,
सांसों में खिलता है उपवन।
रंग-बिरंगी माधुर आलम,
स्नेह कहानी है प्रिय संबल
हरिहरहरपुर की मिट्टी उत्तम,
रामबली का दिल सर्वोत्तम।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/01, 17:39] Dr.Ram Bali Mishra: प्रभु श्री राम पर चौपाई
राम चरण की हो अनुशंसा।
सदा उन्हीं की सहज प्रशंसा।।
राम भजन हो जीवन शैली।
हो समाप्त वृत्ति मटमैली।।
मधुर सलोना राम दुलारा।
तीन लोक में सबसे न्यारा।।
अद्वितीय अनुपम आधारा।
रामचंद्र प्रभु धर्म विचारा।।
राम भक्त तुलसी अति पावन।
हनूमान का मृदुल स्वभावन।।
राम भगति अमृत की धारा।
पी कर उर में अति उजियारा।।
नित प्रसन्न मोहक मुस्कानें।
परम सौम्य शालीन तराने।।
सकल संपदा के अधिकारी।
सहज तपस्वी शिष्टाचारी।।
राम नाम को जो भजता है।
उसको मधु फल नित मिलता है।।
अधिकारी हो नित्य विचरता।
एक लक्ष्य धर प्रति पल चलता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/01, 20:37] Dr.Ram Bali Mishra: सफ़लता
सफ़लता पैर चूमेगी,अगर पक्का इरादा हो।
नहीं धोखा कभी होगा,अगर सत्यार्थ वादा हो।।
मिलेगी राह निश्चित ही,अगर चलने की आदत हो।
मिलेगा धाम पावन सा,अगर मोहक इबादत हो।।
रहेगी जिंदगी उत्तम,अगर धारा मनोरम हो।
सफ़लता धैर्य से मिलती,कदम की चाल में दम हो।।
अगर हो कर्म में निष्ठा,सफ़लता मुस्कराती है।
रहे उत्साह मनभावन,सफ़लता कर मिलाती है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[10/01, 11:08] Dr.Ram Bali Mishra: हिन्दी दिवस पर दोहे
हिन्दू हिन्दी राम हैं,राम विश्व के धाम।
हिन्दी में लिखते रहो,सदा राम का नाम।।
कहते प्रभु श्री राम जी,हिन्दी है सर्वोच्च।
हिन्दी में लेखन करो,हिन्दी पावन सोच।।
हिन्दी अवधी में रचे,तुलसी राम चरित्र।
रामचरित मानस परम,पुस्तक दिव्य पवित्र।।
हिन्दी के उत्थान से,होते राम प्रसन्न।
धन्यवाद हो राम का,हिन्दी देती अन्न।।
हिन्दी में श्री राम ने,किया असुर संहार।
हिन्दी के सम्मान में,दिखे राम का प्यार।।
हिन्दी कविता लेखनी,से मन हो उजियार।
तिमिर कटे आलोक हो,खुश हो रघु दरबार।।
हिन्दी हिन्दुस्तान से,प्यार करे संसार।
यही मधुर साहित्य है,दर्शनीय दीदार।।
धरती माता भारती,दुर्गा हिन्दी मेल।
राम कृष्ण शंकर यहाँ,किये हिंद में खेल।।
पर उपकारी भाव ही,हिन्दी का व्यवहार।
हिन्दी से ही मिल रहा,सबको शिष्टाचार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[10/01, 13:41] Dr.Ram Bali Mishra: सुन्दरता (दोहे)
सुन्दरता की मूर्ति है,मोहक हिन्दीकार।
जो हिन्दी में लिख रहा,उसके मधुर विचार।।
वह मानव सुन्दर अगर,हो हिन्दी से प्यार।
हिन्दी रचनाकार को,सारा जग परिवार।।
शिव सुन्दर प्रिय सत्य है,जिसके मीठे बोल।
हिन्दी में है रस भरा,हिन्दी मधुरिम घोल।।
सुन्दर बनना है अगर,हो हिन्दी से प्रीत।
अति अनुपम मधु भाव में,रच हिन्दी में गीत।।
हिन्दी इस संसार का, सर्वोत्तम उपहार।
हिन्दी में संवाद हो,हिन्दी में व्यवहार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/01, 10:04] Dr.Ram Bali Mishra: साथ निभाना
निभाना साथ का रिश्ता,बहुत अनमोल होता है।
चला करता हमेशा जो,वहीं मधु घोल होता है।।
बहा कर प्रेम की धारा, चहकता है असल साथी।
हृदय मन साफ जिसका है,वही सच्चा मधुर साथी।।
भला लगता जिसे साथी,वही नित काम आता है।
हमेशा छत्रछाया बन,सदा संगति निभाता है।।
मधुर संवाद बन साथी,सदा दिल से बँधा रहता।
नहीं प्रतिकार करता है,निभाया प्यार वह करता।।
यहीं है साथ का बंधन,कभी क्या टूट सकता है?
बड़ा है प्यार भीतर में,कभी क्या छूट सकता है??
हरी झंडी दिखाओ तो, समझ में बात आयेगी।
जरा सा मुस्कराओ तो, हृदय में प्रीति गायेगी।।
बहुत ही प्यार दिल में है,कचोटे मन बड़ा पागल।
तुम्हारे इश्क में डूबा,हृदय प्यारा बहुत घायल।।
लगा अब आज मन कहता, तुम्हीं तो एक प्यारे हो।
तुम्हारे हुस्न का कायल,बहुत ही मस्त न्यारे हो।।
बहा दो प्यार की धारा,बहुत बेताब मन होता।
नहीं कहते अगर हो तो,हृदय मन आज है रोता।।
तुम्हारी बात सुनने को,सदा बेचैन मन रहता।
लगन तुझसे लगी इतनी,मगर कुछ कह नहीं सकता।।
तुम्हारे प्यार में डूबा,सदा दिल सोचता रहता।
निभाना साथ प्रिय साथी,तुम्हीं से बात हर कहता।।
हृदय में बस तुम्हीं रहते,हृदय से बात होती है।
निकलना मत कभी दिल से, सदा मन प्रीति रोती है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/01, 15:49] Dr.Ram Bali Mishra: अवध में राम सदा (शुभांगी छंद )
त्रेता युग का,कलियुग में फिर,हुआ आगमन,अति हर्षण।
दसों दिशाएं,बहुत प्रफुल्लित,वातायन में,आकर्षण।।
सभी परिंदे,कलरव करते, सहज फुदकते,कर जोड़े।
अपनी भाषा,में कहते,नमस्कार प्रभु,मधु छोडें।।
सरयू माता,स्वागत करती,हर्षित होती,मुस्काती।
अपनी लहरों,के निर्मल जल,से सीता को,नहलाती।।
राम लखन सिय,अति उत्सुक हैं,अवध देखने,को आतुर।
खुशियाँ प्रसरित,शीतल शीतल,मन्द पवन का,सुषमा सुर।।
सत रज लेकर,विष्णु लोक से,राम पधारे,ज़न रंजन।
नर लीलाधर,बनकर आये,राम रूप में,मन रंजन।।
स्वागत में है,सारी जनता,बड़े प्रेम से,नतमस्तक।
आया मौसम,शारदीय सा,अति विनीत हो,दे
धरती अम्बर,नदियां नद सब,झील तलैय,सब मोहित।
सारे पर्वत,उन्नत शिखरों,की छाया में,अति लोभित।।
प्रकृति निखरती,भावुक होती,देख राम को,मनभावन।
सकल क्षितिज है,सियाराममय,दिव्य धाममय,अति पावन।।
मन कहता है,साथ रहेंगे,बात करेंगे,जय रामा।
मित्र बने तुम,चलना रघुवर,मेरे प्रियवर,निज धाम।।
साथ तुम्हारा,पा कर प्यारे,हर्षित होगा,मन मेरा।
तन मन अर्पित,सदा समर्पित,मेरा सब कुछ,है तेरा।।
भुला न देना,याद रखो प्रभु,तुम मेरे हो,सच मानो।
सहज प्रतीज्ञा,दिल से करता,तुझसे आशा,है जानो।।
सदा भाव में,मन मन्दिर में,दिल के भीतर,तुम रहते।
चलते चलते,राह दिखाते,उर प्रेरक बन,सब कहते।।
हे रघु राघव,कान्हा माधव,प्रिय सीता पति,सम्मानित।
अजर अमर हो,शक्ति परम हो,दृढ़ संकल्पों,में स्थापित।।
त्रिकालदर्शी,ज़न सम्पर्की,ब्रह्म अजन्मा,चिर श्रेष्ठा।
पावन गंग,की धारा हो, अति प्यारा हो,सत ज्येष्ठा।।
संत समागम,स्थावर ज़ंगम,राम दरश को,जोश भरें।
प्रभुवर ज्ञानी,परहित ध्यानी,ज़न कल्याणी,शोक हरे।।
ढोलकिया सब,ढोल बजाते,अवध सजाते,नृत्य करें।
गीत सुनाते,स्नेह दिखाते,प्रेम जताते,घरे घरे।।
अति मन मुदिता,सदा हर्षिता,भाव विभोरी,अवधपुरी।
कैकेयी मां,माँ कौशल्या,मात सुमित्रा,भावधुरी।।
प्रभु आवन से,मधु भावन है,मन सावन है,हृदय मलय।
काम भावना,सिर्फ यही हैं,राम हमेशा,रहें हृदय।।
ज्योति अलौकिक,जगमग जगमग,जला करे नित,आँगन में।
राम मिलन का,योग सदा हो,लगा रहे मन,याचना में।।
देख राम को,हरे हुए सब,वृक्ष लटकते, छूने को।
रामचरण रज,शिरोधार्य है,मन व्याकुल है,पीने को।।
सकल अवधपुर,सहज राममय,शंकर गणपति,देव सभी।
मिलते राघव,सभी देव से,बड़े प्रेम से,अभी अभी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/01, 18:17] Dr.Ram Bali Mishra: प्रीति रस (शुभांगी छंद )
जिसे प्रीति का,नहीं ज्ञान है,वह मूरख है,अज्ञानी।
कभीं नहीं वह,बन सकता है,सरस सलिल मधु,प्रिय ज्ञानी।।
मानवता को,स्नेहलता को,क्या जानेगा,अज्ञानी।
ज्ञानी केवल,प्रेम पगा जो,प्रीति रसायन,का ज्ञानी।।
वर्षा करती,हर्षित करती,निर्मल धारा,प्रीति सदा।
कभी न हारे,सहज सँवारे,लिखती मोहक गीत सदा।।
कलाकार है,प्रेमदार है,रस बरसाती,प्रीति धरा।
मोहक परिणय,मधुरिम परिचय,नित्य नवल वय,शीत सरा।।
प्रीति गंग के,घाट मनोहर,पुरातनी घर,जल प्यारा।
पीनेवाला, पी कर रस को, नृत्य करे नित,मस्ताना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/01, 10:07] Dr.Ram Bali Mishra: आये हैं प्रभु राम,हृदय से स्वागत हो
(गीत)
आये हैं प्रभु राम,हृदय से स्वागत हो।
गाओ मंगल गीत,राम का स्वागत हो।।
राम अवध में अब आये हैं।
सीता लखन सहित भाये हैं।।
मोहक रूप निराला निर्मल।
दिव्य काम्य कांति अति प्रज्वल।।
आये हैं प्रभु राम,हृदय से स्वागत हो।
गाओ मंगल गीत,राम का स्वागत हो।।
चौदह वर्ष बाद वापस हैं।
राजकुमार दिव्य तापस हैं।।
मनमोहक कृपाल रघुनाथा।
टेके अवधपुरी ज़न माथा।।
आये हैं प्रभु राम,हृदय से स्वागत हो।
गाओ मंगल गीत,राम का स्वागत हो।।
रामचन्द्र अब राजा होंगे।
गीत नृत्य में बाजा होंगे।।
खुशियाँ आज दिखें आँगन में l।
महफिल दिव्य अवध उपवन में।।
आये हैं प्रभु राम,हृदय से स्वागत हो।
गाओ मंगल गीत,राम का स्वागत हो।।
सब में राम राम हैं सब में।
ब्रह्म विरंचित भाव अवध में।।
कण कण में साकार शोभते।
रामेश्वर पर सभी लोभते।।
आये हैं प्रभु राम,हृदय से स्वागत हो।
गाओ मंगल गीत,राम का स्वागत हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/01, 13:41] Dr.Ram Bali Mishra: रहो सदा तल्लीन,राम में लीन रहो (गीत)
रहो सदा तल्लीन,राम में लीन रहो।
रामचन्द्र का चरण पकड़ कर।
अपने मन की सब बातेँ कर।।
अपना दुखड़ा कहते जाना।
खुद की हालत सहज सुनाना।।
रहो सदा तल्लीन,राम में लीन रहो।
बोलोगे तो प्रभु बोलेंगे।
डोलोगे तो वे डोलेंगे।।
करना सारी बातों को तुम।
वे सुनते हैं जो कहते तुम।।
रहो सदा तल्लीन ,राम में लीन रहो।
उर में राम सदा धरना है।
केवल यही काम करना है।।
इतने से ही काम बनेगा।
आजीवन उत्साह रहेगा।।
रहो सदा तल्लीन,राम में लीन रहो।
रामचरण अनुरागी केवल।
उसके रग रग सहज राम बल।।
बन जाता है भक्त सुहाना।
बुद्धिमान विद्वान समाना।।
रहो सदा तल्लीन,राम में लीन रहो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/01, 16:43] Dr.Ram Bali Mishra: निर्मल मन (कुंडलिया)
करता निर्मल मन सदा,भावुकता से प्यार।
भेदभाव बिन यह गढ़े,अति मोहक संसार।।
अति मोहक संसार,सदा इसके उर रहता।
शुद्ध प्यार भंडार,कमल सा निश्चित खिलता।।
कहें मिश्र कविराय, यही हस्ती सा चलता।
बिना किये परवाह, प्रेम य़ह दिल से करता।।
करता भावुक हृदय ही,निर्मल मन से प्यार।
सच्चाई ही प्राथमिक,है इसको स्वीकार।।
है इसको स्वीकार,मूल्य का तानाबाना।
इसे नहीं परहेज,अगर हो शिव पैमाना।।
कहें मिश्र कविराय,पंथ प्रिय वह बस लगता।
जिस पर चलते राम,काम संतों का करता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/01, 17:58] Dr.Ram Bali Mishra: प्रीति (गोपी छंद )
मात्रा भार 15,अंत लघु या गुरु, चार चरण
सदा सहज प्रीति रसखाना।
सहज सरस तंत्र मधु बाना।।
किया करे कर्म विधि नाना।
अमिय अमर अर्थ शुभ ज्ञाना।।
जगत विदित प्रिया अति भोली।
लिये कंध सृष्टि की डोली।।
मधुर मलय शैल शीतल हो।
माननीय स्तुत्य उर तल हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/01, 18:30] Dr.Ram Bali Mishra: दया भाव (चौपई )
दया भाव है ब्रह्म महान।
इसको जानो शिव भगवान।।
दया करो तो तुम हो राम।
पाओगे अमृत का धाम।।
छिपा दया में उर विस्तार।
संवेदन का प्रिय संसार।।
दुख को देख पिघलना सीख।
प्यारे !उत्तम बनकर दीख ।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।