कविता
कविता
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कभी इधर
कभी उधर
कभी पैदल
कभी सड़क
पर सरपट
दौड़ना
कभी बांस झाड़ी
पर चढ़कर
बेर जामुन
फलों को
ढूंढना
कभी खजूर
तले बैठकर
छांव
शीतलता
की प्रतिक्षा में
स्वयं को कोसना
कभी तपती
दोपहरी में
बरगद की
छांव पाकर
गदगद
प्रसन्नचित्त
होकर
बरगद को
सेल्यूट कर
स्नेह भाव
सम्मान कर
जीवन पथ पर
सरपट
दौड़ना
और सर्द
मौसम में
रवि की
तपिश
ईंधन के लिए
बरगद
की शाखाओं को
काटने का
कृत्य
करना
वाह आदमी
वाह आदमी।