कविता
चलते नहीं रिश्ते दबाव से
आदमी परेशान है स्वभाव से
चलते—-
माना बहुत कठिन है इसे निभाना
सच्चाई यही है क्या इसे छिपाना
कीमत बड़ी रिश्तों में चुकानी है
तौले गए किश्तों में रीत पुरानी है
बिन रिश्तों के कहां हमारी आपकी गिनती है
संभाल के रखियेगा ये सभी से विनती है
बचाइए अपने को तनाव से
आदमी—-
चलते——-