कविता
देखकर किसी की शख्सियत को सर झुका देना
यूं तो आदत नहीं है हमारी
देख कर मुस्कुरा देना भी आदत नहीं है हमारी
सामने वाले को खुश करने को मुस्कुरा देता हूं
और अपमान ना हो मेरी संस्कृति का
इसलिए सर को भी झुका देता हूं
देखकर किसी की शख्सियत को सर झुका देना
यूं तो आदत नहीं है हमारी
देख कर मुस्कुरा देना भी आदत नहीं है हमारी
सामने वाले को खुश करने को मुस्कुरा देता हूं
और अपमान ना हो मेरी संस्कृति का
इसलिए सर को भी झुका देता हूं