कविता
कविता मन का अंतर्द्वंद्व है जो काग़ज़ों पर आते ही सजीव-सा लगता है।आसमां में ठहरे बादल बहुत कुछ कहते हैं उद्यान में खिले पुष्प महकते हुए बोलते हैं जो देखते सभी हैं पर उनकी भाषा कोई चितेरा कवि ही पढ़ सकता है।वास्तव में कविता लिखी नहीं जाती बल्कि सिलसिलेवार कही जाती है एक अनुभूत सत्य की भांति।कुछ कविता को लय और काफ़ियों की संगति मानते हैं पर यहां अलफ़ाजों की नक्काशी ही नहीं भावों की प्रखरता व्यक्त करना कविता है।
मनोज शर्मा