कविता
“कर्मठ परिंदे”
***********
(1)मेरे उपवन की डाली पर खग ने नीड़ बनाया था,
तिनका-तिनका जुटा-जुटाकर दृढ़ विश्वास दिखाया था।
साँझ-सवेरे संयम रखके दाना चुनकर लाता था,
बैठ नीड़ में बच्चों के सँग दाना उन्हें चुगाता था।
(2)हरियाली उपवन ललचाए नील गगन भी मन भाया,
रहा न जाए भीतर उनसे विहँस-विहँस तन इठलाया।
बड़े हुए अरमान खगों के नीड़ छोड़ बाहर आए,
पानी की जब प्यास लगी तो कहीं नहीं गागर पाए।
(3)देख पत्र पर बूँदों को तब जल की चाहत उमड़ाई,
दिखा हौसला नन्हें खग ने खोल चोंच राहत पाई।
सिखलाते ये सब खग हमको कर्मठता से काम करो,
विघ्न मिटाकर पथ के सारे जग में अपना नाम करो।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर