कविता बस ऐसी होती है
कैसा प्रश्न है यह
कहो-
‘यह कविता
क्या होती है?’
क्या बतलाऊँ तुमको
क्या होती-कैसी होती है
कविता तो अजस्र
बहती रस की
धारा होती है
तट पर खड़े
बटोही के भी
मन का मल धोती है
कवि मन में
जब बीज
वेदना कोई भी
बोती है
तब-तब
‘पीर प्रस्विनी’ के आँचल में
स्नेह सुधा की
यह सुकुमारी कन्या
कुलबुल-कुलबुल-कुल होती है
पूर्ण चंद्र की
कला
काव्य बन
अवतारित होती है
कविता बस
ऐसी होती है
हाँ! हाँ ऐसी ही होती है