कविता पर दोहे
कविता ऐसी तुम लिखिए, सब को होए ज्ञान।
सारे विश्व का हित हो, जग का हो कल्याण।।
कविता ऐसी चांदनी, चहुं ओर हो प्रकाश।
प्रंशसा करने लगे, अवनि और आकाश।।
कविता कवि की शान है, डालत उसमे जान।
सुंदर स्वर्ण कविता की, यही होत पहचान।।
मन में जब हो वेदना, नयन बहे चुपचाप।
निर्मल मन से शब्द, कविता बनती आप।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम