कविता – “करवा चौथ का उपहार”
कविता – “करवा चौथ का उपहार”
आनंद शर्मा
करवा चौथ का दिन,
सुबह सवेरे
पति ने पत्नी को जगाया
अप्रत्याशित प्रेम के वार से
पत्नी की नींद को भगाया
और अपने मन की बात से
गृहलक्ष्मी को अवगत कराया
प्रिय..इच्छा है मेरी
अपनी किंचित कमाई का
एक बड़ा हिस्सा
आज तुम पर वार दूँ।
अपना अदृश्य प्यार
तुम पर निसार दूं
तुम ही बताओ
आज मैं तुम्हे क्या उपहार दूँ ?
समस्या विकट थी
एक दम निकट थी
दिन भर भूखा रहने की टेंशन
फिर सुबह-सुबह
ये उपहार बॉम्ब
पत्नी हड़बड़ाई
थोड़ी सकपकाई
फिर जल्द ही
कुटिल मुस्कान मुसकाई
हीरे की अंगूठी दिला दो।
प्रेम की भावपूर्ण अभिव्यक्ति का
ये बाज़ारवाद युक्त जवाब था
अपनी लूज बॉल पर
पत्नी के निर्दयी छक्के से
पति लाजवाब था।
उसने खुद को संभाला
अगली बॉल,
गुगली बना के डाला
हीरा तो पत्थर है
उसका क्या लेना ।
तो नेकलेस दिला दो
अगली बॉल पर
एक और छक्का
पति था हक्का बक्का
प्रिय तुम भी क्या
धातु व पत्थर पर अड़ी हो
इस बेकार की सांसारिक
वस्तुओं में फंसी पड़ी हो
जीवन के वास्तविक
आनंद को पहचानो
मेरी मानो, आस पास की
किसी जगह को जानो
घूमने का घूमना
ज्ञान का ज्ञान
पति को इस आउट स्विंगर
पर था पूरा गुमान
उसे लगा बन गया काम
तो ठीक है स्विट्ज़रलैंड ले चलो
एक और सिक्सर
सुबह सवेरे के प्यार के
इज़हार को
पति कोस रहा था
महंगाई और बाज़ारवाद के
इस दौर में खुद की पत्नी को भी
आई लव यू कहना
खतरे से खाली नहीं।
यही सब सोच रहा था
खुद के फैलाए रायते को
अब समेटना था
बिखरती पारी को अब
लपेटना था
पति ने अंतिम ओवर की
अंतिम बॉल डाली
सभी आर्थिक गणनाओं को
एक तरफ रख
ये बात कह डाली
अच्छा बताओ कब चलना है
पत्नी मुस्कुराई
धीमे से उठकर पति के
आलिंगन में आई
बोली आप ही मेरी जिंदगी
का असली हीरा हैं
आप ही मेरे विश्व भ्रमण के
आनंद का ज़खीरा हैं।
मिडिल क्लास फैमिली में
बहती खुशियों का
यही राज़ है
एक को दूसरे से जीतने पर
नाज़ है।
और दूसरे को खुद से
हारने पर नाज़ है।
आनंद शर्मा