कवर
✒️?जीवन की पाठशाला ?️
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की मनुष्य योनि में जन्म लेकर जीने की सार्थकता तब है जब किसी को आपसे आपका नाम या परिचय पूछने की जरुरत ही ना पड़े ….भीड़ में एक अलग चेहरा …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आपकी वजह से मैं यह नहीं कर पाया ,आपकी वजह से मैं वहां नहीं जा पाई ,आपकी वजह से मैं उस मुकाम तक नहीं पहुंचा -ये सब अपने आप को संतुष्ट रखने और सामने वाले को बेवजह के उलाहना देने के बहाने मात्र है ,क्यूंकि जिसको मंजिल तक पहुंचना है उसे कोई भी दीवार /रुकावट रोक नहीं सकती ….,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की किसी भी किताब के कवर को देख कर किताब के शब्दों की गहराई का पता नहीं लगाया जा सकता ऐसे ही किसी भी इंसान के कपड़ों से या उसके आज से उसके बीते कल का पता नहीं लगाया जा सकता . .इसलिए किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले गहराई को मापें -नापें …,
आखिर में एक ही बात समझ आई की अगर उस सृष्टि के मालिक -आसमान में रहने वाले परमपिता पर आपका पूर्ण भरोसा है तो यकीन मानिये ये जमीन पर रहने वाले कितनी ही साजिशें रच लें आपका बाल भी बांका नहीं कर सकते …!
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान