कल टूटकर बिखर गई थी मैं,
कल टूटकर बिखर गई थी मैं,
कुछ इधर कुछ उधर गई थी मैं।
रास्ता तो खत्म हो गया था कब का,
लेकिन जाने क्यों ठहर गई थी मैं।
उसका इंतजार करते करते जब आंखें थकने लगी
तो, मुड़ के अपने घर गई थी मैं।
उसने न जाने क्या देखा था कि,
उसकी नजरों से उतर गई थी मैं।
प्यार किया था उससे बेइंतहा मगर,
अब सोचती हूं ये क्या कर गई थी मैं।