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14 Jul 2018 · 1 min read

कल की भोर

शीर्षक-कल की भोर
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सरला ने व्रद्धाश्रम के बरामदे में जैसे ही प्रवेश किया… पीछे से आवाज आई..
‘नमस्कार बहन जी’
‘कहाँ चली गयी थी आप, पूरा आश्रम बहुत चिंतित था आपके लिए’
आश्रम के संचालक रामलाल ने कहाl

‘कही नहीं भाई साहब मैं अपने बेटे से बात करना चाहती थी इसलिए पी सी ओ तक गई थी लेकिन भीड़ होने के कारण देरी हो गयी’
‘कोइ बात नहीं सब कुशल मंगल तो हे’
‘ जी हां भाई साहब सब ठीक है ओर खुशखबरी भी है कल मेरा बेटा मुझे लेने आने वाला हैl
‘ कल…. कल….. कल तो मैं रोज ही सुन रहा हूँ’ वडबडाते हुए रामलाल गहरी यादों में खो गए
आज से लगभग बीस बरस पहले आई थी सरला, बेटा भारत सरकार में उच्च पद पर तैनात था, शादी व्याह होते ही उच्चता पता नहीं कब निम्नता में तब्दील हो गयी ओर अपने बेटे को अपनी खुशी मानने वाली सरला, आश्रम के एक कोने की शोभा बन गईl
तब से हर दिन का यही हाल है कि रोज फोन होता है ओर वही घिसा पिटा जवाब कल आता हूँ, न कल आया न उसका बेटा…. उस आभागन कौन समझाए कि तेरा बेटा नहीं आने वाला… l
सरला अपने दैनिक कार्यो में जुट गई ओर रामलाल सजल आँखे लिए कल की भोर का इंतजार करने लगे….. शायद ऎसी कोई भोर आये जो उस दुखियारी को बेटे से मिलाने के लिए स्वर्णिम साबित हो l

राघव दुबे ‘रघु’
इटावा (उ0प्र0)
8439401034

Language: Hindi
1 Like · 301 Views
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